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माँ की हकीकत

21 नवम्बर 2021

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यूँ तो माँ को भगवान का दर्जा दिया गया है, परंतु वास्तविक जीवन में उसकी परिस्थिति  एक पालन करने वाली के अलावा कुछ भी नहीं है, (आया). जब एक स्त्री अपने उदर में गर्भ धारण करती है.  वह बहुत खुश होतीं हैं, नौ महीने वह उसकीहर प्रकार से रक्षा करती है कि वो बाहर सही सलामत आये.

कष्ट तब भी होता है, और जब उसके बाहर  आने का समय  होता है तो  अनगिनत कष्टों का सामना करना पड़ता है. जैसे ही बच्चा  जन्म लेता है  माँ  का  भी  दुसरा  जन्म  होता  है. माँ

उस  नन्ही जान  को  देख कर  अति  खुश  होकर  अपने  सारे  असहनिय  कष्टों को  भूल  जाती  है. धीरे धीरे  वह  उसी  में  ढलने  लगतीं  है, जो वह  माँ  बनने  से  पहले  थी   वो  कही  खो  सी  जाती   है , उसे  यह  भी  ज्ञात  नहीं  होता  कि  आखिरी   बार  वह   कब  अपने  लिए  गुणगुणाई  थी,  या  फिर   कब  खुद  के   लिए   श्रंगार  किया था  . उसके  लालन  पालन  में  इतना  व्यस्त  होतीं  हैं , उसे  क्या  खिलाना  है , क्या नही,  क्या  पहनाना  है  क्या  नही.  कही  उसे  नजर  ना  लगे   काला  टीका  लगा  दु.   उसके  खाने की  फिक्र    ,  उसकी   पसंद  नापसंद ,   उसके   कपड़े   धोने   सुखाने  इस  सब  में  रह  जाती   है.  जैसे जैसे   बच्चा   बड़ा   होता  है  , वह  उसी  की  दुनिया   में  जीने  लगतीं  है.  वह  उसे  पथ   भटकने   नहीं  देती  अगर   भटक  जाये   तो   बिना  किसी  को  बताये  पुछे    कि कीसी  को   पता   चला  तो  उस  पर   उंगली   उठाने   का   मौका  मिल  जायेगा .  यह  सोच  खुद 

ही  राह  ढुँढ  कर   वापस  ले   आती  है  .उसे   उसके  हाल   पर 👩    🙏🙏🙏🙏

नहीं   छोड़  सकतीं   क्योंकि   तकलीफ   उसे   होती  है.  परंतु   जैसे जैसे  बच्चे  अपने  लक्ष्य  की  और  अग्रसर  होते

है,  कामयाब  होने  लगते  हैं.  माँ  पुराने  विचारों  की  होने 

लगतीं  है.  जो  कभी  मां   की   उंगली   पकड  कर   चलने     लगे   थे   वो   अपने   आप ही   दौडने  लगते  है. और   अगर   कभी   कुछ   पुछ  लेते   हैं,  और  माँ   उस पर   कुछ

कह या  बता  दे  तो  मानने  की  बजाय  यह  कहते  हैं   कि

तुम  तो  रहने  ही  दो  तुम   को   कुछ   नहीं   पता,  तुम

जमाने  से  बहुत   पिछे   हो. पर  माँ   का   मन  दु:खी  होकर  भी   यह  नहीं   जताता.   वह   खुश  ही  होती   है  और  दुआ  ही   करतीं   हैं   कि   उसके   बच्चे   आगे   बढे,  तरक्की  करे ,  दुनिया   को   जाने,   और  दुनिया  उसके   बच्चों  को . भगवान   के  समक्ष  उनके  बचपन  से   लेकर  

अपने  अंतिम   साँस   तक   वो   अपने   बच्चों  के   लिए   ही

प्रार्थना   करतीं   हैं.   क्योंकि   वो  उन्ही   में   जीवन   जीने  की   आदि  हो   चुकी   होती  है.  धीरे धीरे  इस  सबमें   अंतर

आतें   जाता . अब  तो  माँ  की  भावनाओं  का  भी  कीसी  को   पता  नहीं   चलता,   और  माँ  भी   भावना विहीन   हो 

चुकीं  होती.  इतने  सालों  से  जिस  घर  में  बच्चों  का  बचपन,   उनकी  बढ़त,   उनकी   साजसम्हाल  करती  आयी

वो  घर  ही  अब  उसे  उपेक्षा  से  देखता.  जिस  घर  के  कोने

कोने  में  बच्चों  की  किलकारियां,  शरारतें   सम्हाल  कर  रखे

थे   वें  कोने   अब  उस   का   मजाक  उड़ाते  हैं.  बच्चे   कहते   हैं  आपने  जीवन  में  किया  क्या  है . खाना  बनाने

और  कपड़े  धोने  के  अलावा . बाहर  निकल  कर  देखो  की

दुनिया  में  कितना  बदलाव   आया  है, कीतनी   आगे  निकल    गईं    दुनिया   और   तुम   वही  पिछड़ी  हुईं  हो.

पर  उन्हें   क्या  पता   कि  उसकी  दुनिया   तो   उसके   बच्चों

के  ईर्दगिर्द  ही  थी  , अगर   उसे   यह  सब   पता   होता   कि

आगे   चलकर   यही  सब  होगा  या   होने  वाला  है   तो   

शायद  वह  भी  सब  कुछ  छोड़  कर   इस   दुनिया  में  शामिल  हो   जाती,  दुनिया  के  साथ  तो  चल  पाती  तब  भी

उसपर  उंगली   उठती  की   दुनिया  के  साथ  तो  चल  पड़ीं

परंतु   अपने  घर बच्चों  के  साथ  नहीं .  क्योंकि  उसे  दो  नावों  में  सवारी  करना  कभी नहीं  आया.  और  यही  जीत कर  भी  उसकी   हार  का  कारण  है.  बोला  तो  जाता है  उसे  धरती  का  भगवान  ,  पर  उसे  एक मनुष्य  ही  समझा

जाये  तो  क्या  गलत  होगा.  उसकी  खुशीयां, उसकी भावनायें  समझ  जाओ  तो  क्या  गलत  होगा.  जब  वो  इस

दुनिया  से  विदा  ले लेती  है. तो  दुनिया  के  साथ  का , उसके

पिछड़े  पन  का  साथ  भी   छुट  जाता  है.  याद  बनकर  रह

जाता  है  उसका  प्यार , उसकी  दुआ, उसकी  निर्दोष , निश्चल

हंसी, और  भोली भाली  सुरत. और हमारी  आंखों में  उसकी  

याद  के  बहते  आँसू,. 🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹😘😘


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धन्यवाद🙏

21 नवम्बर 2021

Papiya

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