भारतीय महिला क्रिकेट टीम का विश्व कप का सफर इसी के साथ पूरा हुआ
भारतीय टीम को एक बार फिर से उप विजेता का खिताब मिला।।
पिछले विश्व कप में भी जो पचास ओवर का था , भारतीय टीम इंग्लैंड के हाथो परास्त हुई थी ।।
हालांकि वो हार , इस हार से ज्यादा कड़वी थी क्युकी आज के फाइनल मैच में पहली बॉल से टीम ऑस्ट्रेलिया , भारतीय टीम पर भारी थी और उस फाइनल में भारतीय टीम ने हाथ में आया कप गवां दिया था जब टीम को 44 गेंदों में 38 रन बनाने थे और 7 विकेट बाकी थे।।
आज के मैच को देखने से ये लगता है कि टीम ऑस्ट्रेलिया ने अपना होम वर्क काफी अच्छी तरीके से किया और एक बिल्कुल अलग रणनीति के तहत उतरे और शुरू से भारतीय गेंदों पर प्रहार करते हुए अपने इरादे जाहिर कर दिए
लेकिन मेरा मानना है कि ऑस्ट्रेलिया की ये रणनीति उल्टी पड़ती दिखती अगर पहले ओवर में शेफाली वर्मा ने एलिसा हिली का वो आसान कैच न छोड़ा होता जबकि वो तब सिर्फ 10 रनों पर थी और फिर उसके बाद राजेश्वरी गायकवाड़ ने भी बैथ मूनी का कैच छोड़ दिया ।।
भारतीय गेंदबाज और फील्डर्स जिन पर इस टूर्नामेंट में पहली बार इतना आक्रामक हमला हुआ था , बिल्कुल हक्के बक्के रह गए और इसका असर उन पर साफ दिख रहा था जब उन्हें जैसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि कहा गेंदे फेकनी है और फील्डर्स ने भी कुछ आसान मौके देकर जैसे आग में घी का काम किया।।
इसके बाद तो ऑस्ट्रेलिया ने जैसे आव देखा ना ताव और ग्राउंड के चारो तरफ शॉट्स लगाने शुरू कर दिए और रनों का अंबार लगा दिया।।
भारतीय गेंदबाजी बिल्कुल असहाय सी लग रही थी और ऑस्ट्रलियाई बल्लेबाजों ने इसको जैसे पहले ही भांप लिया था
आखिरकार 115 के स्कोर पर ऑस्ट्रेलिया ने अपना पहला विकेट खोया और फिर 17 वे ओवर में 2 विकटो को खोने के बाद ऐसा लगा कि शायद भारतीय टीम वापसी कर सकती है पर ऐसा कुछ नहीं हुआ और टीम ऑस्ट्रेलिया ने 184 रनों का विशाल स्कोर खड़ा कर दिया जो विश्व कप फाइनल के लिए किसी भी विपक्षी टीम के हौसले पस्त करने के लिए काफी था
जवाब में 185 रनो के लक्ष्य का पीछा करते हुए भारतीय टीम ने इस टूर्नामेंट की सबसे खराब शुरुआत की ।।
अब तक इस विश्व कप में भारतीय बैटिंग की रीढ़ की हड्डी माने जाने वाली शेफाली वर्मा शायद उस कैच के दबाव के साथ खेलने को उतरी और इतना दबाव झेल नहीं सकी और पारी की तीसरी ही गेंद पर कैच आउट होकर पवेलियन लौट चली
और उसके बाद तो जैसे तु चल में आती हूं कि तर्ज पर पूरी टीम ताश के पत्तो के समान मात्र 99 रनो पर सिमट गई
और इस तरह से भारतीय टीम एक और हाथ आया सुनहरा मौका गंवा दिया।।
खैर, जिंदगी इसी का नाम है ।।
भारतीय टीम के लिए सब कुछ खत्म नहीं हुआ है और उन्हें सबसे पहले नाक आउट मैचों में दबाव को केसे झेलना है ये सीखना होगा और बाकी रही क्रिकेट की बाते बाद में।।
इस टीम में काफी क्षमता है पर ऐसा लगता है कि जैसे ही इस टीम पर विपक्षी टीम हमला करती है तो ये टीम बिल्कुल बौखला सी जाती है और बहुत जल्दी अपने हथियार डाल देती है।।
भारतीय टीम को सबसे पहले ये सीखना होगा कि अगर आप किसी टूर्नामेंट के फाइनल की दूसरी टीम है तो उस तरह खेल भी दिखाना होगा।।
दिखाना होगा कि हम किसी भी परिस्थितियों में वापसी की क्षमता रखते है और अंत तक लड़ने की कला विकसित करनी होगी।।
इसी उम्मीद के साथ हमारी सारी शुभकानाएं टीम के साथ।।
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