"महिलाओं के विरुद्ध अपराध : -
चाहिये त्वरित न्याय व संवेदनशील पुलिस"
- राष्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों ने देश में महिलाओं की अस्मिता की रक्षा के सवाल को एक बार फिर चर्चा के केन्द्र में ला खड़ा किया है। इन आंकड़ों के अनुसार 2013 की तुलना में 2014 में महिलाओं से बलात्कार के मामलों में वृद्धि हुई है जबकि देश की राजधानी दिल्ली ने एक बार फिर दूसरे प्रदेशों की राजधानियों को इस अपराध में पीछे छोड़ दिया है।
- दिसंबर, 2012 में निर्भया सामूहिक बलात्कार एवं हत्या मामले के बाद तीव्र जनाक्रोष उपजा। तब भारतीय दंड संहिता में बलात्कार से संबंधित कानूनी प्रावधानों में संशोधन किया गया। इन्हें और अधिक कठोर बनाये जाने के बावजूद जघन्य अपराधों की संख्या में कमी क्यों नहीं हो रही है।
- अप्रैल, 2013 से लागू इन नये प्रावधानों के तहत बलात्कार जैसे अपराध के लिये कठोर सज़ा का प्रावधान किया गया है। सामूहिक बलात्कार जैसे अपराध के लिये तो कम से कम 20 साल और अधिकतम उम्रकैद की सज़ा का इसमें प्रावधान है। इसके बावजूद महिलाओं के प्रति यौन-हिंसा के अपराधों में बदस्तूर वृद्धि हो रही है।
- सरकार को ऐसे मामलों में दोषियों को सज़ा देने की न्यायिक प्रक्रिया पूरी करने की एक समयबद्ध रणनीति तैयार करनी होगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि आरोपी किसी भी स्थिति में मुकदमे को लंबा नहीं खींच सके। इसके लिये राज्य सरकारों को अदालतों की संख्या में वृद्धि करनी होगी।
- राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि 2013 में पूरे देश में महिलाओं से बलात्कार के 33707 मामले सामने आये थे जबकि 2014 में इनकी संख्या बढ़कर 36735 तक जा पहुंची। इन आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में 2013 में बलात्कार के 1636 और 2014 में 2096 मामले दर्ज किये गये। इसी अवधि में मायानगरी मुंबई में क्रमशः 391 और 607 मामले दर्ज हुए जबकि कोलकाता में इस तरह के अपराधों में कमी दर्ज की गयी। प्रतिशत के आधार पर देखा जाये तो दिल्ली के मुकाबले मुंबई में ऐसे अपराधों में इजाफा हुआ है।
=>महिलाओं के विरुद्ध अपराध रोकने की रणनीति :-
- अपराधों पर अंकुश के लिये सबसे पहले तो महिलाओं के प्रति अपराध से संबंधित मामलों की तफतीश करने वाले पुलिस अधिकारियों को ऐसे अपराधों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है।
- इसके साथ ही सभी राज्यों में महिलाओं के प्रति अपराध, विशेषकर बलात्कार और यौन-हिंसा से संबंधित मुकदमों के लिये त्वरित अदालतें गठित करने के साथ ही इनमें लंबित मामलों के निपटारे की समय-सीमा निर्धारित की जाये।
- डेनमार्क की महिला के साथ पिछले साल नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के निकट सामूहिक बलात्कार की घटना को इसी कड़ी में रखा जा सकता है। इस महिला ने भारत आकर हालांकि अदालत में कुछ बलात्कारियों की पहचान की है लेकिन यह मामला अभी निचली अदालत में ही है।
- मुकदमों की सुनवाई के लिये दिल्ली में त्वरित अदालतें बनी हैं लेकिन उनकी संख्या पर्याप्त नहीं है। पंजाब में भी कुछ त्वरित अदालतें बनायी गयी हैं लेकिन दूसरे राज्यों में इसके प्रति अभी भी उदासीनता ही नजर आ रही है। यदि इन राज्यों को त्वरित अदालतें गठित करने में कठिनाई हो रही है तो ये कम से कम अपने-अपने राज्य में निचली अदालतों में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के रिक्त पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया को ही गति प्रदान करके अपराध न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में सहयोग कर सकते हैं।
- केन्द्र सरकार ने निचली अदालतों में लंबित मुकदमों के शीघ्र निपटारे के लिये 2000 में राज्यों में 1734 त्वरित अदालतों के गठन को मंजूरी दी थी। इसके लिये केन्द्र सरकार ने आर्थिक मदद भी मुहैया करायी थी लेकिन केन्द्रीय मदद बंद होने के साथ ही राज्यों ने इनकी संख्या कम करनी शुरू कर दी। इस समय विभिन्न राज्यों में सिर्फ 473 त्वरित अदालतें ही काम कर रही हैं।
- चूंकि महिलाओं के प्रति समूचे देश में अपराध बढ़े हैं इसलिए पुलिस की मौजूदा कार्यशैली में भी व्यापक सुधार की आवश्यकता है। पुलिस कर्मियों को महिलाओं की अस्मिता और उनके अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक और संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है।