वो सब तो हमे बहुत चाहने वाले निकले, गंदे से दिखाई देते थे वो,पर दोनो वक्त नहाने वाले निकले, धुतकार देते है कुछ लोग उन्हे,पर वो ये नही जानते कि जिन मकानो मे हम रहते है,ये उन्हे बनाने वाले निकले, जिन रास्तो पर हम आज आसानी से चल लेते है उबड़ खाबड़ थे कभी ये, वो मजदूर ही है,जो इन रास्तो को सुन्दर बनाने वाले निकले, बिना निंव के मकान की कल्पना है असंभव, बिन मजदूर के हम कैसे पा लेते इतना वैभव, बिना मजदूर के हर आस हमारी अधुरी है,और हमारी इस चकाचौंध के पिछे बस मजदूरो की ही मजदूरी है, सात अजूबे है इस दुनिया मे,ये अजूबे आज नही होते, अगर इनको बनाने वाले वो आठवे अजूबै मजदूर नही होते, आज हर वो शक्स मजदूर है, जो अपने घर परिवार से दुर है, हर वो शक्स मजदूर है, जो मेहनत से थक कर चुर है, वो मजदूर है, मजबुर नही, देश की तरक्की करता है वो, पर मशहूर नही, कहता है मजदूर मन,कि धिर हूँ, अधिर हूँ मैं, निरंतर चलना जानता हूँ, कभी रूकुँगा नही, क्योंकि हर देश की तकदीर हूँ मैं, मजदूर हूँ मै,मजदूर हूँ मै, मजदूर हूँ मै,,,,,, 📝कवि महेश दाँगी, ग्राम :भोपावर तेहसील:सरदारपुर जिला:धार म,प्र, ☎9893238445