मानस गीत मंजरी मेरी पहली प्रकाशित कविता संग्रह है।
मानस गीत मंजरी में मेरी 48 कविताएं हैं जो तीन खण्डों में हैं ।
प्रथम खण्ड में आध्यात्मिक दार्शनिक आध्यात्मिक रचनाएं हैं जो ब्रह्मा विष्णु शिव के 'उस एक' त्रिगुण ब्रह्म रूप की खोज में भटकती मेरी जीवात्मा की छटपटाहट व्यक्त करती हैं। मुझे इस धरती एवं आकाश की हर चीज में ईश्वर के गुंण प्रभाव एवं रहस्य तथा सृष्टि के मूल पांच तत्वों में ब्रह्मा विष्णु एवं शिव तीनों के गुंण तो दिखाई पड़ते हैं किन्तु ईश्वर स्वयं नहीं दिखता । बस, यही कारण है मेरी छटपटाहट का ।
द्वितीय खण्ड में मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण कविताएं हैं । इनमें 'अज्ञात प्रेयसी की प्रतीक्षा' में मेरे एकाकी ह्दय की चीत्कार एवं छटपटाहट व्यक्त करती रचनाएं हैं ।
तृतीय खण्ड में सामाजिक विषयों पर कविताएं हैं । इन कविताओं मेंं समाज में व्याप्त अनेंक दुर्बलताओं कुरीतियों कुप्रथाओं पर आघात करती एवं सत्य से सामना कराती मेरी विचारधारा है, विशेष रूप से जन्म आधारित जाति प्रथा पर प्रहार करती एवं एक नये वैश्विक आधुनिक भारतीय समाज की परिकल्पना करती रचनाएं हैं ।
मानस गीत मंजरी से एक आध्यात्मिक रचना
यह कविता जन्म और मृत्यु को वेदिक दर्शन के चश्में से देखती है। वेदिक उपनिषदीय दर्शन में ब्रह्मांश (ब्रह्म का अंश) को ही आत्मा या प्रांण कहा गया है जो मनुष्य के शरीर में जीवन का कारक और कारण होता है।
मेरी आध्यात्मिक कल्पना है कि ब्रह्म का एक अंश जब भूलोक में किसी मनुष्य के शरीर में स्थापित होने के लिए प्रस्थान करता होगा तो ब्रह्म को निश्चित रूप से कष्ट होता होगा और इस ब्रहमांश के वापस लौटने पर प्रसन्नता होती होगी। ब्रह्म से मैने जिज्ञासा प्रकट की है, सत्य जानने हेतु।
मेरे गांव चित्रकूट में किसी के घर जन्म होने पर नाऊन या नाई पूरे गांव में थाली बजाते हुए घूमते थे और जन्म की सूचना देते थे। थाली बजाना जन्म का प्रतीक था।
जन्म और मृत्यु
यहाँ
थाली बज रही है, शिशुनाद
गूँज रहा है
गीत संगीत और उत्सव है।
और वहाँ,
तुम दुखी उदास बैठे हो
।
क्या कोई बिछुड़ गया है
तुमसे
या कठिन यात्रा पर निकल
गया है
जो आँसू बहा रहे हो।
यहाँ
करुण क्रन्दन विलाप है,
अन्तिम सेज सज रही है।
और वहाँ,
तुम पुलकित मुस्कुरा
रहे हो
यह माला किसके लिये है।
क्या कोई आने वाला है,
जो बन्दनवार सजा रहे
हो।
मौन तोड़ो, कुछ तो बोलो, रहस्य खोलो।