हे त्रिपुरारी नीलकंठ महादेव,जग हितकारी अविकारी प्रभु।नागपाश गले में साजे तुम्हरे,सिर पे गंगे और चंद्र प्रभु।।संग गौरा गणेश कार्तिकेय,पर्वत कैलाश विराजै प्रभु।आयो श्रावण मास पावन,पुष्प चरणों में अर्पित
18/7/22प्रिय डायरी, आज मैंने हनुमान चालीसा पाठ लिखना शुरू किया है।कुछ धर्म और आध्यात्म की ओर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की है।धर्म पर पुस
*इस संसार में जितने भी जीव हैं सब ईश्वर की संतान हैं और सब में ही एक दिव्य आत्मा है और उस आत्मा के मध्य में परमात्मा का निवास है | यह मानते हुए प्रत्येक मनुष्य को परस्पर एकता , निश्चलता , प्रेम और उदारता का व्यवहार करना चाहिए | ऐसा करने से जीवन में अजस्र पवित्रता का अवतरण होने लगता है , सर्वत्र सद्
*इस धरा धाम पर आ कर जब मनुष्य सज्जनों के साथ सत्संग करता है , तब उसे आत्मा परमात्मा के विषय में ज्ञान होता है तब वह आत्मोपलब्धि के विषय में आतुर हो जाता है | उसके मनोमस्तिष्क में अनगिनत प्रश्न उठने लगते हैं | ईश्वर कौन है ? कहां है ? कैसा है ? ईश्वर को कहाँ खोजें ? कैसे खोजें ? मनुष्य विचार करने लग
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*सृष्टि का संचालन परब्रह्म की कृपा से होता है इसमें उनका सहयोग उनकी सहचरी माया करती है | यह सकल संसार माया का ही प्रसार है | यह माया जीव को ब्रह्म की ओर उन्मुख नहीं होने देती है | यद्यपि जीव का उद्देश्य होता है भगवत्प्राप्ति परंतु माया के प्रपञ्चों में उलझकर जीव अपने उद्देश्य से भटक जाता है | काम ,
*मानव जीवन में भौतिक शक्ति का जितना महत्व है उससे कहीं अधिक आध्यात्मिक शक्ति का महत्व है | सनातन के विभिन्न धर्मग्रंथों में साधकों की धार्मिक , आध्यात्मिक साधना से प्राप्त होने वाली आध्यात्मिक शक्तियों का वर्णन पढ़ने को मिलता है | हमारे देश भारत के महान संतों , साधकों , योगियों ऋषियों ने अपनी आध्यात
*सनातन धर्म में मानव जीवन को चार भागों में विभक्त किया गया :- ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ एवं सन्यास | सन्यास का लक्ष्य होता है परमात्मा की प्राप्ति , सन्यास लेना बहुत ही कठिन है | प्रायः मनुष्य को जब किसी भावनात्मक चोट से , स्वयं के विचार से वाह्य भौतिक जगत से मोहह टूटता है तो व्यक्ति स्वयं औ
*ईश्वर द्वारा बनाई गई चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करता हुआ जीव अपने कर्मानुसार जब मनुष्य योनि को प्राप्त करता है तो यह जीव अनेक प्रकार के बंधनों से बंध जाता है | इसी बंधन से मुक्त हो जाने पर जीव का मोक्ष माना जाता है | जीव का बंधन क्या है ? इस पर हमारे महापुरुषों के अनेकानेक विचार प्राप्त होते हैं
*इस धरा धाम पर जन्म लेने के बाद मनुष्य का एक ही लक्ष्य होता है ईश्वर की प्राप्ति करना | वैसे तो ईश्वर को प्राप्त करने के अनेकों उपाय हमारे शास्त्रों में बताए गए हैं | कर्मयोग , ज्ञानयोग एवं भक्तियोग के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त करने का उपाय देखने को मिलता है , परंतु जब ईश्वर को प्राप्त करने के सबसे
*इस संसार में मनुष्य येनि में जन्म लेने के बाद जीव अनेकों प्रकार के ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है | प्राय: लोग भौतिक ज्ञान प्राप्त करके स्वयं को विद्वान मानने लगते हैं परंतु कुछ लोग ऐसे भी हैं जो आध्यात्मिक एवं आत्मिक ज्ञान (आत्मज्ञान) प्राप्त करने के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहते हैं | आत्मज्
*मानव जीवन बड़ी ही विचित्रताओं से भरा हुआ है | ब्रह्मा जी की सृष्टि में सुख-दुख एक साथ रचे गए हैं | मनुष्य के सुख एवं दुख का कारण उसकी कामनाएं एवं एक दूसरे से अपेक्षाएं ही होती हैं | जब मनुष्य की कामना पूरी हो जाती है तब वह सुखी हो जाता है परंतु जब उसकी कामना नहीं पूरी होती तो बहुत दुखी हो जाता है |