मेहँदी..... हम दोनों में कौन मेहँदी की पत्तियाँ है और कौन बून्द भर पानी नही जानती मैं, लेकिन जब भी जीवन में कठिनाइयों के कठोर पत्थर के नीचे पिसे हैं हम हमारा प्रेम और भी गहरा होकर रच गया हमारे रिश्ते पर वैसे ही जैसे शगुन की लाल सुर्ख मेहँदी रच जाती है दुल्हन की हथेलियों पर और उतर जाती है एक मेहन्दीली सुगंध हमारी आत्माओं में और हराभरा रखती है हमारा मन वैसे ही जैसे शुष्क तप्त मरुस्थल में भी हरीभरी रहती है मेहँदी अपने अंदर प्रेम की सम्पूर्ण लालिमा को सहेजे हुए।। डॉ विनीता राहुरीकर