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मेर द्वार ! !

20 अक्टूबर 2016

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डगर डगर,

गुलशन चली !
बहकी हुई बयार !


डाल डाल,

तितलियों के,

मदहोशी उदगार !


फूल फूल,

मुसकान है,

भृमर करें सतकार !


कली कली,

करती मलय !

मान मेरी मनुहार !


खिल खिल,

तुझे रिझाऊंगी,

कल है अपनी बार !


ठहर ठहर जा,

पवन बस !

इक दिन मेर द्वार ! !

पंडित गौरव की अन्य किताबें

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मजबुरी

20 अक्टूबर 2016
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आलीशान बंगले में एक अंधी महिला ने प्रवेश किया। स्टाफ मे नई सेविका ने उत्सुकतावश हेड से पूछा। "ये कौन है?"स्टाफ हेड - "मैडम के बच्चे चीकू की देखभाल के लिए..."सेविका - "पर ये तो देख नहीं सकती? क्या मैडम या साहब को दया आ गई इस बेचारी पर और कहने भर को काम दे दिया?"स्टाफ हेड - "तुझे साहब लोग धर्मशाला वाल

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मेर द्वार ! !

20 अक्टूबर 2016
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डगर डगर,गुलशन चली !बहकी हुई बयार !डाल डाल,तितलियों के,मदहोशी उदगार !फूल फूल,मुसकान है,भृमर करें सतकार !कली कली,करती मलय !मान मेरी मनुहार !खिल खिल,तुझे रिझाऊंगी,कल है अपनी बार !ठहर ठहर जा,पवन बस !इक दिन मेर द्वार ! !

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मैं गंगा

20 अक्टूबर 2016
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मैं गंगाराजा भागीरथ की 5500 वर्षों की तपस्या नेमुझे पृथ्वी पर आने को विवश कियामेरे उद्दात वेग को शिव ने अपनी जटा में लियाऔर मैं गंगापृथ्वी पर पाप के विनाश के लिएआत्मा की तृप्ति के लिएतर्पण अर्पण की परम्परा लिए उतरी ...पृथ्वी पर पाप का वीभत्स रूप शनैः शनैः बढ़ता गया ...किसी की हत्या ,किसी की बर्बादीआ

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राम या रहीम

20 अक्टूबर 2016
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गंगा जमुना संस्कृति का समन्वय करने वाला ये देश जिसके गौरव का लोहा समूचा विश्व प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मानता चला आ रहा है| ये देश सूफियों और हिन्दू धर्म गुरुओं की कर्म भूमि रहा है ये देश उन महा पुरुषों की धरोहर है,जिन्होंने इसे अपनी साधना से सींचा है | ये वो सोभाग्यशाली भूमि है जिसे एक और हजरत

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