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मैं गंगा

20 अक्टूबर 2016

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मैं गंगा

राजा भागीरथ की 5500 वर्षों की तपस्या ने

मुझे पृथ्वी पर आने को विवश किया

मेरे उद्दात वेग को शिव ने अपनी जटा में लिया

और मैं गंगा

पृथ्वी पर पाप के विनाश के लिए

आत्मा की तृप्ति के लिए

तर्पण अर्पण की परम्परा लिए उतरी ...

पृथ्वी पर पाप का वीभत्स रूप शनैः शनैः बढ़ता गया ...

किसी की हत्या ,

किसी की बर्बादी

आम बात हो गई

स्व के नकारात्मक मद में डूबा इन्सान हैवान हो उठा !

जघन्य अपराध करके

वह दुर्गा काली की आराधना करता है

खंजर पर

गलत मनसूबों की ललाट पर

देवी देवता के चरणों को छू

विजय तिलक लगाता है

लाशों की बोरियां मुझमें समाहित करता है ...

मेरे सूखते ह्रदय ने

हैवान बने इन्सान को

घुटे स्वर में कई बार पुकारा ...

पर बड़ी बेरहमी से वह मेरी गोद में

लाशें बिछाता गया ......

अति की कगार पर

मैंने हर देवालय को खाली होते देखा है

अब मैं - गंगा

फिर से शिव जटा में समाहित हो

भागीरथ के तप से मुक्त होना चाहती हूँ

क्योंकि इस दर्द से मुक्त करने में

भागीरथ भी अवश शिथिल हैं

उनके तप में मुझे लाने की शक्ति थी

पर घोर नारकीय तांडव के आगे तपस्या ......


अपने अपने दिल पर हाथ रखकर कहो मुमकिन है क्या ?

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