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मेरा गाँव

13 सितम्बर 2017

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हाथ बाँधे सच खड़ा है

असत्य की मुट्ठी में कैद

कराहता, अश्रु बहाता

उपेक्षा प्रताड़ना का गीत गाता

छलावे की राजनीति से त्रस्त

बहुमत

अल्पसंख्यक हो गया है

अपनी ही लाश पर

रो रहा है पर हाथ लगाने वाला कौन

मालिक ! तू भी मौन

पर -------

निराशा को ढ़ोता मेरा गाँव

बारह आना धूप चार आना छाँव

ऐसे में न्याय की लालशा

मन को बहलाने का ख्याल

अच्छा है

ईख की सूखी पत्तियों से

बने हुए घरों की भीड़

जैसे गौरये का नीड़

गरीबों का जन्म और मृत्यु का

गवाह बना है

सदियों से तना है

लेकिन मात्र डेढ़ हाथ

यही है सपनों का गाँव

जिसपर फ़िल्में बना कर कितनों ने अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार पा लिए

बना लिए, महलों पर महल

और मेरे गाँव

हाथ कटे उस कारीगर की तरह

अपाहिज है आज भी

जिसने बनाया दूसरों के

लिए ताजमहल

झूठ का सच जानना हैं तो

मेरे गाँव आइये

वरना शाम कर चौपाल बंद होनेवाली है

डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना

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