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मेरे और नाज़ के अफ़साने - 1

26 मई 2016

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कि वो मुलाकात पहली नहीं थी।

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चार आँखे मिली और दो जोड़ी होठों पर मुस्कान थिरक उठी।

आँखों का मिलना और होठों का हँसना, ये पहली बार तो नहीं हुआ था। ही आखिरी बार। पर होठों की हँसी यूँ  पहलीबार बिखरी थी। इस हँसी से दो अनाम बदन नहा उठे थे। कि सिर्फ बदन बल्कि उनके भीतर धड़कते दिल भी। जो ये जिस्मो जां को मुक्म्म्ल नहलाने के लिए होठों की हँसी कम पड़ी तो एक जोड़ी झील सी आँखों ने उन्हें अपने पहलू में ले लिया।

हाँ, सिर्फ एक जोड़ी आँखें। क्योंकि दूसरी जोड़ी तो पहली जोड़ी आँखों में जाने कब की डूब चुकी थी।

उस रात मेरी करवटों ने बताया था मुझे कोई और जन्म में भी कोई मुलाकात हुई थी। 

--सुधीर मौर्य    

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