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मुक्तक

20 जुलाई 2022

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तीर फिर तरकशों से निकलने लगे ।

रोशनी के लिए फिर भटकने लगे ।

सोच उल्टी दिखे आदमी की यहाँ -

अम्न के ख्वाब देखो बिखरने लगे ।।


       ✍️ अरविन्द त्रिवेदी

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