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नरेश वर्मा के बारे में

1942 में यू . पी के मुरादाबाद में जन्में नरेश वर्मा , पेशे से भले ही इंजीनियर रहे हैं किंतु उनका झुकाव सदैव से कला और साहित्य की ओर रहा है ।जबलपुर प्रवास के दिनों में वह दस वर्षों तक रंगमंच से जुड़े रहे ।देहरादून में स्थाई रूप से बसने के बाद ,उन्होंने संपूर्ण रूप से स्वयं को साहित्य साधना में समर्पित कर दिया।वर्मा जी द्वारा लिखित एवं प्रकाशित पुस्तकें-(१)-“आनंद एक खोज” पुस्तक ,जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करती है ।(२)- “ देसी मैन विद् अंकल सैम “ यह पुस्तक वर्मा जी के अमेरिकी प्रवास के रोचक संस्मरणों का लेखा जोखा है । (३)- “लाइन पार”- वर्ष १९४६-४७ के राजनीतिक उठापटक के मध्य दो विपरीत समुदाय के युवाओं की प्रेम कहानी को रेखांकित करता भावनात्मक उपन्यास ।(४)- “ कर्म योगी”- दिवंगत श्री ओमप्रकाश जी की बायोग्राफ़ी (५) “सदाबहार “- कहानी संग्रह- १५ कहानियों का ऐसा गुलदस्ता जिसके हर फूल में भिन्न रंग और महकती ख़ुशबू है। इसके अतिरिक्त अब तलक ३०-३५ कहानियाँ , समय-समय पर विभिन्न पत्रिकाओं एवं ऑनलाइन साहित्यिक एप पर प्रकाशित होती रही हैं एवं पाठकों द्वारा सराही गई हैं। जीवन की लंबी मैराथन दौड़ से प्राप्त अनुभवों का निचोड़ वर्मा जी की रचनाओं में साफ़ झलकता है ।गूढ़ विषयों को भी भाषा की सहजता एवं सरलता से प्रस्तुत करने की कला का साक्ष्य उनकी लेखनी में झलकता है । प्रस्तुत उपन्यास-उद्बोधिता, को उनकी सर्वश्रेष्ठ कृतियों के समानांतर रखा जा सकता है ।नारी ,प्रेम और ब्रह्मचर्य के त्रिकोण में उलझी कहानी हर पल एक नये मोड़ से गुजरती है ।

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नरेश वर्मा की पुस्तकें

उद्बोधिता

उद्बोधिता

उगते सूर्य की किरणों से झिलमिल करती माँ नर्मदा की लहरों पर बहता मृत प्रायः युवा नारी शरीर…..क्या उसमें जीवन शेष था ? …….. सदानंद बाल-ब्रह्मचारी है।सांसारिक बंधनों से मुक्त होते हुए भी वह एक ऐसी परीक्षा से गुजरता है जो ब्रह्मचर्य के निषेधों पर प्रश्न

5 पाठक
18 रचनाएँ
2 लोगों ने खरीदा

ईबुक:

₹ 42/-

प्रिंट बुक:

200/-

उद्बोधिता

उद्बोधिता

उगते सूर्य की किरणों से झिलमिल करती माँ नर्मदा की लहरों पर बहता मृत प्रायः युवा नारी शरीर…..क्या उसमें जीवन शेष था ? …….. सदानंद बाल-ब्रह्मचारी है।सांसारिक बंधनों से मुक्त होते हुए भी वह एक ऐसी परीक्षा से गुजरता है जो ब्रह्मचर्य के निषेधों पर प्रश्न

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नरेश वर्मा के लेख

मेरी बात

25 जून 2022
1
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हम क्यों लिखते हैं ? मैं लिखता हूँ, क्योंकि कहने को बहुत कुछ है । जीवन की लंबी मैराथन दौड़ से हासिल अनुभवों का पिटारा भर गया है मेरे दिल और दिमाग़ में । मन करता है कि अपनी भावनाओं को अपने अनुभवों को ल

समर्पण

25 जून 2022
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पुस्तक का प्रथम समर्पण मेरे आराध्य श्री राम एवं बजरंग बली जी को। द्वितीय समर्पण उन मनीषियों एवं पाठकों को जिनके प्रोत्साहन से हिन्दी भाषा की लौ निरंतर प्रकाशमान हो रही है । मैं आभारी हूँ श्रीमती कमले

एक झलक

25 जून 2022
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उगते सूर्य की किरणों से झिलमिल करती माँ नर्मदा की लहरों पर बहता मृत प्रायः युवा नारी शरीर…..क्या उसमें जीवन शेष था  ? …….. सदानंद बाल-ब्रह्मचारी है। सांसारिक बंधनों से मुक्त होते हुए भी वह एक ऐसी परीक

(१५)

25 जून 2022
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दो वर्ष पश्चात् ———————- जबलपुर का लम्हेटा घाट । सूर्यास्त होने वाला है । लालिमा युक्त सूर्य का प्रतिबिंब नर्मदा के जल पर क्रीड़ा सी कर रहा है ।घाट की सीढ़ियों पर बैठी मानसी के केशों के मध्य से झांक

(१४)

25 जून 2022
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समय -चक्र का पहिया अपनी धुरी पर समान गति से घूम रहा है, किंतु संसार में जो घट रहा है वो समान नहीं है । जो कल था वो आज नहीं है, जो आज है वो संभवतः कल नहीं होगा । भारतीय लोकतंत्र के वो २१ महीनों के आपा

(१३)

25 जून 2022
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वृक्षों की परछाई लंबी हो गई हैं । सूर्य का लाल गोला पश्चिम की ओर अस्त होने की प्रक्रिया में तत्पर हो चला है । वृक्षों के साये में धुँधलका घिरने लगा है । नर्मदा के तिलवारा घाट से मीलों दूर, यहाँ से सघन

(१२)

25 जून 2022
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कुछ महीने अमेरिका में अपनी बड़ी बेटी सुरभि के पास रहने के पश्चात संदीप शर्मा एवं पत्नी सुलेखा इंडिया लौट आए थे ।अमेरिका की भव्यता भी घायल ह्रदय में कोई रंग न भर सकी थी । मन में सुकून न हो तो महकी बगिय

(११)

25 जून 2022
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आश्रम की भूमि पूजन समारोह के पश्चात । सुनीता-विला की वह बूँदों भरी शाम, जब किसी ने सदानंद से २५वर्षों के संचित, ब्रह्मचर्य त्याग की याचना की थी । एक ऐसे त्याग की याचना जो उसकी साधना की संचित पूँजी थी

(१०)

25 जून 2022
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समारोह में जाने से पूर्व मानसी प्रसन्न एवं उल्लासित थी । मन के किसी कोने में उसे यह अहसास था कि वह सदानंद के लिए विशिष्ट है । वरना कोई क्यों किसी अनजान लड़की के लिए परमानंद आश्रम व्यवस्था के विरुद्ध व

(९)

25 जून 2022
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जबलपुर का फुहारा चौक । त्रिपुरा कांग्रेस अधिवेशन का स्मृति-द्वार  (सुभाष चन्द्र बोस ने 1939 में कांग्रेस से इस अधिवेशन में त्याग पत्र दिया था) सिर उठाये खड़ा है । इसी फुहारा चौक में १०-१२ साइकिलों पर

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