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उद्बोधिता

नरेश वर्मा

18 अध्याय
2 लोगों ने खरीदा
5 पाठक
25 जून 2022 को पूर्ण की गई
ISBN : 978-93-94647-25-1
ये पुस्तक यहां भी उपलब्ध है Amazon Flipkart

उगते सूर्य की किरणों से झिलमिल करती माँ नर्मदा की लहरों पर बहता मृत प्रायः युवा नारी शरीर…..क्या उसमें जीवन शेष था ? …….. सदानंद बाल-ब्रह्मचारी है।सांसारिक बंधनों से मुक्त होते हुए भी वह एक ऐसी परीक्षा से गुजरता है जो ब्रह्मचर्य के निषेधों पर प्रश्न चिन्ह खड़े करता है ।…… प्रेम जीवन का शाश्वत सत्य है ।प्रेम ह्रदय से उपजता है किंतु ह्रदय शरीर का एक अंग ही है ।प्रकृति ने शरीर में ही वह हार्मोंस भी दिए हैं जो युवा होते शरीर में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण उत्पन्न करते हैं ।क्या प्रकृति गत आवेगों को बलात् दबाना उचित है ? यह ऐसा ही है जैसे वर्षा में शांत नदी का जल उफान लेने लगता है ।बाढ़ आ जाती है ।बाढ़ के जल से सुरक्षा हेतु ,बाँध बाँधने पड़ते हैं ।समाज को मर्यादित करने के लिए ही प्रकृति गत हार्मोन को नियंत्रित करने को ब्रह्मचर्य रूपी बाँध की कल्पना की गई। नारी ,प्रेम और ब्रह्मचर्य के त्रिकोण में उलझी कहानी हर पल एक नये मोड़ से गुजरती है ।बियाबान जंगल में जीर्ण-शीर्ण से खंडहर मंदिर का वह अघोरी क्या प्रश्नों के उलझे धागों को खोल पाया ? यौवन की सीड़ियों पर कदम रखती मानसी ने पहले भी प्रेम किया था ।किंतु यौवन की उम्र का प्रेम, मन की गहराइयों से न होकर शरीर के उथले धरातल से उठा आवेग भर था ।यौवन की बेल प्रायः उस वृक्ष पर लिपट जाती है जिसे नज़दीकियों का संयोग मिल जाये।इसी भूल की सजा मानसी ने पाई थी।जिसे उसने प्रेम समझा था वो यौवन का उद्दीपन भर था ।आज समाज से तिरस्कृत, दीन-हीन स्त्रियों की सेवा में उसने प्रेम को जान लिया है ।प्रेम और उद्दीपन का अंतर पहचान लिया है । डूबती किश्ती को उबारा क्यूँ था ? लहरों में समाई , तो सहारा क्यूँ था ? दिया ग़र सहारा ,तो बेसहारा क्यूँ था? मन की माटी में रोपे उम्मीदों के बीज , जमीं का वह टुकड़ा,बंजर क्यूँ था ?  

udbodhita

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श्री नरेश शर्मा जी को उपन्यास उद्बोधिता के लिए हार्दिक बधाई । बहुत ही रोचक कथानक है जोकि शुरू से अंत तक रीडर को बाँधे रखता है । ये सामाजिक चेतना भी जगाता है । हम समाज को कंपार्टमेंट में बाँट कर रखते हैं । फिर एक सामाजिक परिभाषा से कुछ को ऊँचा और कुछ को नीचा दर्जा दे देते हैं जैसे कि एक आचार्य या ब्रह्मचारी को एक आम आदमी से ज़्यादा उच्च स्तर पर रखा जाता है । उपन्यास इन societal norms को question करता है । और ये सोचने पर मजबूर करता है कि क्या नारी का अपने परिजनों के प्रति प्रेम, त्याग और वात्सल्य किसी साधु के तप की तुलना में कम है यह उपन्यास संवेदना, सहानुभूति समानुभूति और प्रेम जैसी मानवीय भावों के जीवन में मूल्य को भी दर्शाता है। Overall a gripping and thought provoking novel . A must read for those who love reading good Hindi literature


बहुत ही सुंदर उपन्यास है

नरेश वर्मा की अन्य किताबें

पुस्तक के भाग

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समर्पण

25 जून 2022
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पुस्तक का प्रथम समर्पण मेरे आराध्य श्री राम एवं बजरंग बली जी को। द्वितीय समर्पण उन मनीषियों एवं पाठकों को जिनके प्रोत्साहन से हिन्दी भाषा की लौ निरंतर प्रकाशमान हो रही है । मैं आभारी हूँ श्रीमती कमले

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मेरी बात

25 जून 2022
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हम क्यों लिखते हैं ? मैं लिखता हूँ, क्योंकि कहने को बहुत कुछ है । जीवन की लंबी मैराथन दौड़ से हासिल अनुभवों का पिटारा भर गया है मेरे दिल और दिमाग़ में । मन करता है कि अपनी भावनाओं को अपने अनुभवों को ल

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एक झलक

25 जून 2022
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उगते सूर्य की किरणों से झिलमिल करती माँ नर्मदा की लहरों पर बहता मृत प्रायः युवा नारी शरीर…..क्या उसमें जीवन शेष था  ? …….. सदानंद बाल-ब्रह्मचारी है। सांसारिक बंधनों से मुक्त होते हुए भी वह एक ऐसी परीक

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(१)

24 जून 2022
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ब्रह्म-बेला की मंद-मंद बयार में शीतलता का आभास है।होली को बीते अभी एक सप्ताह ही हुआ है ।रात्रि की कालिमा के चिन्ह अभी पूर्ण रूप से लुप्त नहीं हो पाए हैं । पूर्व दिशा से हल्के प्रकाश की आभा का प्रस्फुट

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(२)

24 जून 2022
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मुख्य शहर से १६-१७ किलोमीटर दूर ,नर्मदा के लमहेटा घाट से २ किलोमीटर दूर स्थित परमानंद आश्रम एक बड़े भू-भाग में फैला है। साधकों के लिए साधना का उपयुक्त वातावरण प्रदान करने वाली, प्रदेश की प्रमुख आध्यात

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24 जून 2022
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स्वतंत्रता प्रिय लोगों की स्मृति में २८ अप्रेल १९७६ का दिन कभी न भूलने वाला दिन था। देश के संविधान का वह वचन-पत्र जो व्यक्ति को न्याय के अधिकार के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, उसी व

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24 जून 2022
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जबलपुर भीषण गर्मी से तप रहा है। आज नौ- तपा का पहला दिन है। नौ-तपा अर्थात् झुलसा देने वाली गर्मी के वह नौ दिन जिनमें पारा ४५ डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करता प्रतीत होता है। नौ-तपा झुलसाता है पर आस

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24 जून 2022
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शहर की हवाओं में एक सन्नाटा सा पसरा है। लोकतंत्र जेलों में बंद है। लोकतंत्र के स्तंभ रेडियो और प्रेस पर ताला जड़ा है।ऐसे में लमहेटा घाट से सटा परमानंद आश्रम भला कैसे अछूता रह सकता था। कुछ दिन पहले ही

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24 जून 2022
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राइट-टाउन का सुनीता-विला नाम का वह मकान जो कपिल अवस्थी के सच्चिदानंद बनने के पश्चात से वीरानी का दंश झेल रहा था, आज पुनः आबाद हो गया है । दिन के १२ बजे सुनीता-विला के आगे टैक्सी रुकी।कपिल अवस्थी के लि

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24 जून 2022
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जबलपुर के आधार-ताल का वह मकान जो कभी दो बुलबुलों की मीठी तान से महका करता था, आज ख़ाली पिंजरे सा तन्हाई के आग़ोश में डूबा है । इस समय मकान की बालकनी में घर के स्वामी पति-पत्नी एकाकी से बैठे हैं । संद

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25 जून 2022
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“ऐकला चलो रे“ की लीक पर चलते सदानंद की मुहिम का परिणाम कोई ख़ास उत्साह वर्धक नहीं रहा था । मोहल्लों, गलियों एवं बाज़ारों की धूल फाँकने के पश्चात भी लोगों की जेब से चंदा-उगाही की कोशिशें कुछ फलीभूत नही

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25 जून 2022
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जबलपुर का फुहारा चौक । त्रिपुरा कांग्रेस अधिवेशन का स्मृति-द्वार  (सुभाष चन्द्र बोस ने 1939 में कांग्रेस से इस अधिवेशन में त्याग पत्र दिया था) सिर उठाये खड़ा है । इसी फुहारा चौक में १०-१२ साइकिलों पर

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25 जून 2022
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समारोह में जाने से पूर्व मानसी प्रसन्न एवं उल्लासित थी । मन के किसी कोने में उसे यह अहसास था कि वह सदानंद के लिए विशिष्ट है । वरना कोई क्यों किसी अनजान लड़की के लिए परमानंद आश्रम व्यवस्था के विरुद्ध व

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25 जून 2022
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आश्रम की भूमि पूजन समारोह के पश्चात । सुनीता-विला की वह बूँदों भरी शाम, जब किसी ने सदानंद से २५वर्षों के संचित, ब्रह्मचर्य त्याग की याचना की थी । एक ऐसे त्याग की याचना जो उसकी साधना की संचित पूँजी थी

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25 जून 2022
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कुछ महीने अमेरिका में अपनी बड़ी बेटी सुरभि के पास रहने के पश्चात संदीप शर्मा एवं पत्नी सुलेखा इंडिया लौट आए थे ।अमेरिका की भव्यता भी घायल ह्रदय में कोई रंग न भर सकी थी । मन में सुकून न हो तो महकी बगिय

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25 जून 2022
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वृक्षों की परछाई लंबी हो गई हैं । सूर्य का लाल गोला पश्चिम की ओर अस्त होने की प्रक्रिया में तत्पर हो चला है । वृक्षों के साये में धुँधलका घिरने लगा है । नर्मदा के तिलवारा घाट से मीलों दूर, यहाँ से सघन

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25 जून 2022
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समय -चक्र का पहिया अपनी धुरी पर समान गति से घूम रहा है, किंतु संसार में जो घट रहा है वो समान नहीं है । जो कल था वो आज नहीं है, जो आज है वो संभवतः कल नहीं होगा । भारतीय लोकतंत्र के वो २१ महीनों के आपा

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25 जून 2022
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दो वर्ष पश्चात् ———————- जबलपुर का लम्हेटा घाट । सूर्यास्त होने वाला है । लालिमा युक्त सूर्य का प्रतिबिंब नर्मदा के जल पर क्रीड़ा सी कर रहा है ।घाट की सीढ़ियों पर बैठी मानसी के केशों के मध्य से झांक

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