उगते सूर्य की किरणों से झिलमिल करती माँ नर्मदा की लहरों पर बहता मृत प्रायः युवा नारी शरीर…..क्या उसमें जीवन शेष था ? …….. सदानंद बाल-ब्रह्मचारी है।सांसारिक बंधनों से मुक्त होते हुए भी वह एक ऐसी परीक्षा से गुजरता है जो ब्रह्मचर्य के निषेधों पर प्रश्न चिन्ह खड़े करता है ।…… प्रेम जीवन का शाश्वत सत्य है ।प्रेम ह्रदय से उपजता है किंतु ह्रदय शरीर का एक अंग ही है ।प्रकृति ने शरीर में ही वह हार्मोंस भी दिए हैं जो युवा होते शरीर में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण उत्पन्न करते हैं ।क्या प्रकृति गत आवेगों को बलात् दबाना उचित है ? यह ऐसा ही है जैसे वर्षा में शांत नदी का जल उफान लेने लगता है ।बाढ़ आ जाती है ।बाढ़ के जल से सुरक्षा हेतु ,बाँध बाँधने पड़ते हैं ।समाज को मर्यादित करने के लिए ही प्रकृति गत हार्मोन को नियंत्रित करने को ब्रह्मचर्य रूपी बाँध की कल्पना की गई। नारी ,प्रेम और ब्रह्मचर्य के त्रिकोण में उलझी कहानी हर पल एक नये मोड़ से गुजरती है ।बियाबान जंगल में जीर्ण-शीर्ण से खंडहर मंदिर का वह अघोरी क्या प्रश्नों के उलझे धागों को खोल पाया ? यौवन की सीड़ियों पर कदम रखती मानसी ने पहले भी प्रेम किया था ।किंतु यौवन की उम्र का प्रेम, मन की गहराइयों से न होकर शरीर के उथले धरातल से उठा आवेग भर था ।यौवन की बेल प्रायः उस वृक्ष पर लिपट जाती है जिसे नज़दीकियों का संयोग मिल जाये।इसी भूल की सजा मानसी ने पाई थी।जिसे उसने प्रेम समझा था वो यौवन का उद्दीपन भर था ।आज समाज से तिरस्कृत, दीन-हीन स्त्रियों की सेवा में उसने प्रेम को जान लिया है ।प्रेम और उद्दीपन का अंतर पहचान लिया है । डूबती किश्ती को उबारा क्यूँ था ? लहरों में समाई , तो सहारा क्यूँ था ? दिया ग़र सहारा ,तो बेसहारा क्यूँ था? मन की माटी में रोपे उम्मीदों के बीज , जमीं का वह टुकड़ा,बंजर क्यूँ था ?
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