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राष्ट्रीय मुद्दों पर, सनातन धर्म सिद्धान्त पर चर्चा एवं अपनी कविताओं का संग्रहालय ।
<ol><li><span style="line-height: 1.42857;">राष्ट्रीय मुद्दों पर, सनातन धर्म सिद्धान्त पर चर्चा एवं अपनी कविताओं का संग्रहालय ।</span><br></li></ol>
सुना था कई बार आते जाते ठोकरों से ।जिंदगी हौले से कान में कुछ कह गई थी ।।मान लेता तो अपनी नज़रों में गिर जाता ।ये नज़रें गुमाँ से ज्यादा क्या देखती है कभी ?!!
आँगन में गिरे-बिखरे, फटे-पुराने कुछ पल चुन रहा हूँ।बचपन के सपनों की गुदड़ी से मैं वक़्त सिल रहा हूँ ।।जिल्द लगा कर कुछ पसंद की किताबें रखी थी छज्जे पर ।इन दिनों कलम से रेखांकित उसकी पंक्तियों को पढ़ रहा हूँ ।।रंग बिरंगी स्याही से लिखकर दोस्तों ने बधाइयां भेजी थी ।रद्दी वाले डब्बों में खुशियों के वो सार
जहर सा फैल गया है माहौल में,सांस लीजियेगा ज़रा संभाल कर ।।कम सांसों पर जीने का रियाज़ कीजिये,के ज़िन्दगी आपकी बहुत क़ीमती है ।।