आँगन में गिरे-बिखरे, फटे-पुराने कुछ पल चुन रहा हूँ।
बचपन के सपनों की गुदड़ी से मैं वक़्त सिल रहा हूँ ।।
जिल्द लगा कर कुछ पसंद की किताबें रखी थी छज्जे पर ।
इन दिनों कलम से रेखांकित उसकी पंक्तियों को पढ़ रहा हूँ ।।
रंग बिरंगी स्याही से लिखकर दोस्तों ने बधाइयां भेजी थी ।
रद्दी वाले डब्बों में खुशियों के वो सारे धड़कन ढूंढ रहा हूँ ।।