हर कोई लड़के की चाह नहीं रखता – ये सुन कर उम्मीद मिलती है.
लेकिन इन सब के बीच कुछ ऐसी चीज़ें, कुछ ऐसी बातें सुनने में आती हैं कि न केवल उम्मीद की चिंगारी बुझ जाती है बल्कि मन और घिना जाता है.
आठ महीने की प्रेग्नेंट ‘गुड्डी’ को जब लेबर-पेन उठा तो वो अपने पति के साथ इटखोरी, झारखंड में जयप्रकाश नगर के ओम क्लिनिक पहुंची. क्लिनिक में थे – अरुण और अनुज. दोनों ने फैमिली को कन्विंस किया – दो बातों के लिए –
# 1 – अल्ट्रा साउंड
# 2 – सिज़ेरियन
इस केस में ये दोनों ही चीज़ें बड़ी ग़ैरज़रूरी थीं. कारण था कि माता-पिता को कोई फ़र्क नहीं पड़ता था कि लड़का हो या लड़की और साथ ही, प्रथम दृष्टया, केस इतना क्रिटिकल नहीं था कि सिजेरियन किया जाए.
लेकिन हॉस्पिटल में कोई बार्गेनिंग नहीं करता – जिंदगी-मौत का सवाल जो होता है. और इसी का फायदा, फायदा उठाने वाले लोग उठाते हैं. ये ‘लोग’ कोई भी हो सकते हैं, किसी नर्सिंग होम के कर्मचारी से लेकर, गेट के बाहर की कैंटीन वाला.
लेकिन एक बात हम सब को हमारी सामर्थ्य से अधिक खर्च करने पर मजबूर कर देती है – ‘ज़िंदगी बची रहनी चाहिए, पैसे तो फिर भी कमा लिए जाएंगे.’
तो यही गुड्डी के केस में भी हुआ. सबसे पहले अल्ट्रासाउंड किया गया और उसे बताया गया कि आपके पेट में लड़की है. जबकि कोई अल्ट्रासाउंड किया ही नहीं गया था. लड़की इसलिए बताया कि ‘कथित’ डॉक्टर्स को लगा होगा कि क्या पता आने वाले बच्चे के माता-पिता बच्चे को गिरवाने और इस राज़ को राज़ रखने के एवज़ में क्लिनिक को मोटी रकम देंगे.
(यकीनन यही उनका पुराना अनुभव रहा होगा, इसलिए वे बाई डिफ़ॉल्ट ये बात सोच कर चल रहे थे.)
लेकिन अनिल पंडा और गुड्डी (पति-पत्नी) ने एकमत होकर कहा, आप सिजेरियन की तैयारी करिए. अब नर्सिंग होम के कर्मचारियों को काटो तो खून नहीं. लेकिन अब भी उम्मीद की एक किरण थी – प्रायिकता.
50% प्रायिकता इस बात की कि लड़की होगी. शायद पहली बार किसी ने दिल से ये दुआ की होगी कि लड़की हो. लेकिन हो गया लड़का. अब?
पैसे लिए जा चुके थे. सिजेरियन और अल्ट्रा साउंड दोनों के. इसके बाद भी क्लिनिक के लिए ये कम दिक्कत देने वाला मसला होता कि मान लिया जाए – ग़लती हो गई थी और लड़का हुआ है.
लेकिन झूठ और गैंबलिंग में यही समानता होती है – जहां गैंबलिंग में आप एक छोटा दांव हारने के बाद पैसे वापसी की चाहत में बड़ा, और बड़ा दांव लगाते जाते हैं और हारते चले जाते हैं, ठीक वैसे ही एक झूठ छुपाने के लिए केवल आप हज़ार झूठ ही नहीं बोलते बल्कि हर झूठ और उसका प्रभाव पहले वाले झूठ से बड़ा होता चला जाता है.
तो, झूठ और गैंबलिंग के इसी सिद्धांत के चलते, बजाय कि क्लिनिक अपनी ग़लती बताता उन्होंने नवजात का लिंग काट दिया और नवजात के माता पिता को बताया कि जो बच्चा/बच्ची पैदा हुआ है उसमें विकार है और दरअसल वह ‘हिजड़ा’ है.
उधर बच्चा इस दर्द को सहन न कर सका और मर गया!
बाद में पड़ताल करने पर पता चला कि इस मामले में जिस आरोपी को लोग डॉक्टर मान रहे थे उसके पास पीएनडीटी अधिनियम के तहत कोई पंजीकरण या लाइसेंस नहीं था.