नॉक नॉक !!
प्रसाद जी बार बार कानों में पड़ती आवाज से आखिर बिस्तर छोड़कर उठ गए, उठते ही दो क्षण को बिस्तर पर बैठे बैठे ही अंदाजा लगाया कि आवाज बाहर के दरवाजे से आ रही है| फिर वही आवाज नॉक...नॉक....
“हाँ हाँ भाई आता हूँ – दरवाजा ही तोड़े दे रहे |” अपना आखिरी वाक्य थोडा धीमे बोलते वह चादर हटाते चप्पल पहनने लगते है|
“कौन आया है ?”
आवाज सुन उनका ध्यान बगल में सोई पत्नी पर गया जो अब उनकी ओर करवट लेती हुई हलके से आंख खोले उनकी ओर देख रही थी|
“देखता हूँ |” कहकर उठकर बाहर के दरवाजे की ओर चल दिए|
नॉक...नॉक.. फिर तेज हो गई थी..इससे झल्लाते हुए आता हूँ कहकर आगंतुक पर अपना रोष जाहिर करते एक घुमती नज़र से दीवार घडी की ओर देखते है जिसमे रात के गयारह बजे थे|
दरवाजा तुरंत ही खोलकर उस पार नज़र गड़ाते हुए देखते है सामने एक उन्नीस बीस साल की लड़की और उसके पीछे कोई अधेड़ औरत पूरी तरह से सकपाई हुई खड़ी थी| प्रसाद जी के दरवाजा खोलते वे धाराप्रवाह बोल उठी –
“अंकल आपको बोला था न घर में कुछ तो है – आप अभी देखिए चल के – किचेन का सारा सामान जमीन में पड़ा है – कुछ समझ नही आ रहा है क्या हो रहा है – रात भर खट खट की आवाज आती रहती थी अब तो घर का सामान भी इधर से उधर हो रहा है – चलिए आप जल्दी चलिए |” वह लड़की इतनी हडबडाहट में थी कि दो पल को लगा कि अपने सामने खड़े पचपन वर्षीय हष्ट पुष्ट देह वाले प्रसाद जी को वह हाथ पकड़कर ही अपने साथ ले जाएगी पर किसी तरह अपने को जब्त किए बस उनके आगे आगे भागती हुई उनका मार्ग प्रशस्त करने लगी पर वे उतने ही इत्मीनान से उसके पीछे पीछे चलते हुए कह रहे थे –
“अरे रुको रुको चल के देखते है – अब इतनी रात को वहम ही हुआ होगा |”
“वहम !!” अचानक उनके साथ साथ चल रही अधेड़ औरत का चेहरा तन गया और वह रोष से बोल उठी – “पूरे चार महीने से हम अजीब अजीब चीजो का अनुभव कर रहे है तब भी आप नही माने अब तो सामान भी इधर से उधर होने लगा है और आपको अभी भी ये वहम लग रहा है – कभी कभी तो लगता है आप जानकर ही कुछ मानना नही चाहते|”
इस आखिरी वाक्य को वे जानकर अनसुना करते उनके आगे आगे चलते हुए अब उसी फ्लोर के एक अन्य फ़्लैट की ओर बढ़ रहे थे| वे साकेत अपार्टमेन्ट के पंद्रहवे फ्लोर में बने छह फ़्लैट में एक फ़्लैट से निकल कर उसी फ्लोर के दूसरे फ़्लैट की ओर बढ़ रहे थे| वे जानकर उनकी बात को न सुन पाने का प्रदर्शित करते आगे आगे चलते रहे और अगले ही पल उनके फ़्लैट के सामने खड़े थे जिसका दरवाजा अभी बंद था और उसके सामने सकपकाए भाव से खड़ी लड़की अब कह रही थी – “ये दरवाजा तो मैंने खुला छोड़ा था – बंद कैसे हुआ ?”
इस पर प्रसाद जी बुरा सा मुंह बनाते हुए उस दरवाजे के मूठ जैसे लॉक की नॉब घुमाते हुए बोलते है – “ऑटो लॉक डोर है – छोड़ दोगी तब भी अपने आप बंद हो जाएगा अब हर एक बात पर डरती रहती हो तो क्या कहे – लो खुल गया दरवाजा |”
दरवाजे का नॉब घुमाते दरवाजा खुल गया, और इसके साथ ही लड़की के चेहरे के भाव भी बदल गए वाकई इस वक़्त वह गलत साबित हुई थी क्योंकि दरवाजा ऑटो लॉक वाला ही था| दरवाजा खुलते उसके पार नज़र दौड़ाते प्रथम दृष्टि में उनकी नज़रों को कुछ भी अजीब नही दिखता जिससे वे सहज ही अन्दर आते हुए चारोंओर नज़र घुमाते हुए कहते है – “बताओ क्या है यहाँ – कुछ भी तो नही है – बिटिया तुम माँ बेटी अकेली रहती हो इसलिए मन वहम से डर गया होगा – घर में कुछ भी अजीब नही है सभी कुछ तो सही जगह लग रहा है |”
“आप किचेन में चलिए - |” ज्यादा कुछ न कहते हुए वह लड़की उनके आगे आगे चलती किचेन की ओर आती है|
प्रसाद जी के साथ साथ आगे बढ़ती लड़की की माँ भी उस ओर तेजी से बढ़ गई, इस वक़्त माँ बेटी के चेहरे के भाव पूरी तरह से उड़े हुए थे मानों उन्हें पहले से ही अंदाजा हो कि आगे का दृश्य कैसा होने वाला है|
प्रसाद जी उसी तरह इत्मीनान से किचेन की ओर मुड़े जो प्रथम कमरे से होते हुए आखिर में एक कोने में बना था, उसके मुहाने में पहुँचते वे अपनी वक्र दृष्टि से किचेन को देख डालते है और उस वक़्त वहां का नज़ारा कुछ अलग ही लगा जिसकी ओर इंगित करती वह महिला अब बोल रही थी – “देखिए अब भी आप इसे वहम कहेंगे – आटे का कनस्तर गिरा है जबकि किचेन में हम आए ही नही फिर ये अपने आप कैसे गिर गया ?” वे तेजी से उनकी ओर मुड़ती हुई अपनी प्रश्नात्मक नज़रे उनके चेहरे पर गडा देती है| पर प्रसाद जी उसकी बात का जवाब देने के बजाये झुककर उस ओर देख रहे थे जहाँ स्लैप पर लुढ़का पड़ा कनस्तर से कुछ आटा गिर कर फर्श पर फ़ैल गया था, वे कुछ पल तक उस जगह को देखते रहे जैसे गहन मुआयना कर रहे हो फिर उसके अगले ही क्षण बिना कुछ बोले पलटकर वापस किचेन से निकल कर अन्यत्र कमरे की ओर बढे जिसके बगल में कुछ खुले स्थान पर जहाँ वेंटिलेशन के लिए दीवार पर एक सरकती हुई खिड़की बनी थी जो गैलरी की ओर खुलती थी, उसे ध्यान से देख चुकने के बाद पलटकर उस महिला की ओर देखते है जो अभी भी उन्हें बेहद हैरानगी से देख रही थी|
“मैं समझ गया अब आप भी समझो – ये खिड़की आपने खुली छोड़ दी और यही से बिल्ली आई जिसने दूध के चक्कर में आटे के कनस्तर को गिरा दिया जिससे आटा निकलकर फर्श पर गिर गया और यही क्लू रहा बात समझने के लिए |” वे कहते जा रहे थे और दोनों माँ बेटी अवाक् कभी उनकी ओर देखती कभी उस खिड़की की ओर जिसकी ओर इशारा करते वे अभी भी कह रहे थे – “आटे पर बने पंजो के निशान देखो और यही निशान इस खिड़की के पास भी है – बस इतनी सी बात है जिसका फालतू में बतंगड़ बना दिया |” अबकी बुरा सा मुंह बनाकर अपनी बात खत्म करता वह बाहर की ओर निकलने लगा तो पीछे से वह लड़की बोल उठी – “मैंने आपके पास आने से पहले देखा था तब न ये खिड़की खुली थी और न यहाँ कोई पंजे के निशान थे |”
“तो इतनी देर में कोई भूत बना गया |” वे अपनी चिढ़ी हुई आवाज में बोलते हुए आगे बढ़ते रहे|
“आप समझ नही रहे – बहुत कुछ अजीब है यहाँ – सामान का इधर से उधर हो जाने को आप क्या कहेंगे ?”
“यही कि भ्रम है तुम्हारा और कुछ नही |” अबकी उसकी ओर पलटकर अपनी बात कहते हुए घूरते है जिससे उन दोनों के हकबकाए चेहरे को वे देखते रहे|
“मतलब पिछले चार महीने से जो भी हो रहा है वो सब आपको भ्रम लग रहा है ?” वह महिला तीक्ष्ण नज़र से उनकी ओर देखती है जिससे वे हाँ में सर हिलाते हुए उसे लगते है जिससे वह बिना रुके फिर कह उठती है – “आपको लगता है क्या आधी रात हमे मजा रहा है इस तरह खुद को परेशान करके अगर आपको ऐसा ही लगता है तो रुककर आप देखते क्यों नही ?”
“ठीक है !” वह गुस्से वाला चेहरा बनाए उनके मुख्य आगे वाले कमरे की किनारे पड़ी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ जाता है| वह महिला और लड़की भी अब वही खड़ी रहती है न कही आगे बढती है न पीछे जाती है| वे पिछले चार महीने से इस घर में रहने आई थी| वह तलाकशुदा महिला एक नौकरी पेशा थी और उसकी बेटी अभी अपनी पढाई पूरी कर रही थी जिससे दिनभर ही घर खाली रहता और रात में थककर जब वह सोती तो इसी तरह कुछ न कुछ अजीब अजीब हतकत होती शुरुवात में वे भी इसे वहम से ज्यादा कुछ न समझती पर हरकते जब ज्यादा बढ़ने लगी तब उनका दिमाग ठनका कि जरुर कुछ तो गड़बड़ है इस घर में पर जब भी वह अपनी बात उस फ़्लैट के मालिक प्रसाद जी को कहती तो हमेशा की तरह वे इसे वहम ही साबित करते| इस तरह कुछ देर तक खामोश कमरे में बैठे तीनो लोगों ने कोई भी आहट नही की जैसे उस कमरे के मौन को वे सुनना चाह रहे थे| अभी पांच मिनट भी नही बीता और ऊबते हुए प्रसाद जी उठते हुए बोले – “देखिए कुछ भी तो नही हो रहा - अब आधी रात में कब तक मैं यहाँ बैठा रहूँगा |” वे ज्यादा कुछ न कहते बस उनकी झुकी नज़रों को देखते बाहर निकल गए अब दरवाजे को बंद करने वह महिला और उसकी बेटी शायद डर से माँ के साथ साथ उनके पीछे पीछे चल दी| प्रसाद जी के बाहर निकलते महिला दरवाजा बन कर पलटकर अपनी बेटी की ओर देखती है जो अब अपनी माँ की ओर ही देख रही थी इस वक़्त माँ बेटी आँखों ही आँखों में एकदूसरे को हौसला देती है| महिला अब बेटी से नजर हटा कर कमरे को एक सरसरी निगाह से देखती है तो अगले ही पल उसके मुंह से एक दबी सी चीख उबर आती है, बेटी माँ का हाव भाव देख झट से अब उसकी नज़रों की सीध में देखती है तो उसके चेहरे का भी रंग उड़ जाता है मानों दोनों से साक्षात् भूत देख लिया हो| दोनों माँ बेटी उड़े चेहरे से अब एक ही दिशा में देखती हुई मानों बर्फ सी जम गई| अभी अभी जिस कुर्सी पर से उठकर प्रसाद जी गए थे अब वहां वो कुर्सी नही थी| तो वह कुर्सी गई कहाँ ? और उनके बिना हिलाए वह अपनी जगह से कैसे गायब हो गई? वे अभी ये सोच ही रही थी कि तभी कुछ गिरने की आहट हुई जिससे उनकी तन्द्रा भंग हुई और वे सहमी सी एकदूसरे का हाथ थामे वही से खड़ी खड़ी थोडा आगे झुककर आवाज की दिशा की ओर देखती है, आवाज किचेन की ओर आई थी और वे वही से झुककर किचेन का मुहाना देखती है तो उनकी आँखे डर से फैलकर चौड़ी हो जाती है, उनके पैर कांप उठते है उस पल लगता है जैसे किसी ने उनके शरीर का समस्त खून निचोड़ लिया हो| वे देख रही थी किचेन के उस हिस्से की ओर जहाँ अब वह प्लास्टिक की कुर्सी औंधे गिरी पड़ी थी|
प्रसाद जी वापस अपने घर आ गए और सीधे अपने सोने वाले कमरे में जाते ही बिना पत्नी की ओर देखे बिस्तर पर लेटने का उपक्रम करने लगे| पर पत्नी की नज़र अब सीधी उन्ही की ओर थी जो उन्ही से मुखातिब होती कह रही थी – “किरायदार थी – फिर कुछ हुआ होगा उनके घर में – गए थे क्या देखने – सब ठीक है न ?”
“अरे हाँ हाँ |” उसके सारे प्रश्न का संक्षिप्त सा उत्तर देते वे चादर ओढ़ कर खुद को सोया हुआ दिखाने का प्रयास करते है जिससे पत्नी ज्यादा कुछ नही कहती और कुछ पल तक उनकी ओर देखने के बाद खुद भी करवट लेकर सो जाती है|
सुबह उठते चाय को सुड़कते हुए निसंतान पति पत्नी जो उस फ़्लैट में अकेले ही रहते थे वे आपस में बात कर रहे थे| पत्नी थोड़ी नाराजगी से बोल रही थी – “ये चौथा किरायदार था उस फ़्लैट का जो खाली कर गया – अब क्या करेंगे – यही काम है क्या हर छह महीने में नया किरायदार रखो – आप समझते क्यों नही कि सच में उस फ़्लैट में कुछ तो है ऐसा जिससे कोई किरायदार वहां नही टिकता |”
“है तो क्या करना – रख लेंगे दूसरा किरायदार – इस अपार जनसंख्या वाले देश में आदमी की कोई कमी है क्या ?”
“कैसी बात करते हो – ये अच्छा है क्या कि किसी को धोखे मे रखकर वो फ़्लैट देकर और उसे परेशान होने उसके हाल में छोड़ दे बस किराये के लिए !”
“हाँ तो क्या हुआ – जब तक रहते है तब तक देते है फिर दूसरा आकर देगा – तुम भी फालतू की बात छेडती हो – हर महीने बैठे बिठाए दस हज़ार मिल जाता है हाँ बस एक किरायदार के बाद दूसरा किरायेदार का कुछ दिन इंतजार करना पड़ता है – अब इस तरह सोचो कितने सारे किरायदार किसी फ़्लैट में बरसो गुजार देते है इससे खुद ही हमे नया नया किरायदार मिल जाता है |”
“क्या जरुरत है ये सब करने की – हमारे न आगे कोई न पीछे – चार दुकानों से तीस हज़ार हर महिना आ जाता है फिर जानकर इस भूतिया फ़्लैट को खरीदने की क्या जरुरत थी आखिर ?”
“अरे तुम न कुछ दुनियादारी समझे बगैर ही बोल देती हो – पता है इस इलाके में उस फ़्लैट की कीमत सत्तर लाख है और वो फ़्लैट हमे बस बीस लाख में मिल गया – इस मौके के सौदे को यूँही जाने देता – अब हर महीना दस हज़ार आता है सो अलग |” पत्नी कुछ और कहने को हुई पर उससे पहले ही वे बोलते है – “इस इलाके को देखते हुए कितना कम किराया है इसका – अभी पंद्रह तक में उठ रहा है फ़्लैट और मैं महज दस में दे देता हूँ |”
“हाँ उनकी जान का जोखिम उठा कर |” जल्दी से पत्नी बोलकर उनकी बात पूरी करती है|
“जान का जोखिम कैसे – कुछ हुआ बुरा क्या अभी ?”
“अभी नही हुआ तो आगे भी नही होगा ये कैसे मान ले – अभी तक घर का सामान इधर से उधर होता है कल को लोग भी कही....|” वह जानकर अपनी बात अधूरी छोडती हुई पति का मुंह देखती रही|
तभी उनकी वार्तालाप मोबाईल की घंटी से बीच में ही बाधित हो गई| प्रसाद जी डिस्प्ले में जाना पहचाना नंबर देखकर मुस्करा कर फोन उठा लेते है – “हाँ बोल दुबे |”
उस पार उनका हमउम्र मित्र दुबे था जो कह रहा था – “सुन प्रसाद एक किरायदार है बिलकुल जानने वाले है मेरे - मियां बीवी और एक छोटा बच्चा – नौ हज़ार पर तुरंत मान गए – जल्दी ही शिफ्ट करना चाहते है – मैंने तुम्हारा पता बता दिया है – कुछ आगे बात बढ़ेगी तो मैं फोन करता हूँ – ठीक है |”
जल्दी ही बात कर फोन डिसकनेक्ट कर वे मोबाईल रखते हुए पत्नी के चेहरे के भाव को पढ़ते हुए कहते है – “नया किरायदार मिल गया है शायद जल्दी ही शिफ्ट कर ले – अब बेकार की बात सोचना छोड़ो और कुछ बढ़िया बनाकर खिलाओ |”
पत्नी को शायद उनकी बात बिलकुल नही अच्छी लगी पर मन मारे वह उठती हुई बोली – “जो जी में आए करो – अब फिर से रोजाना दरवाजे पर वही खट खट होगी और तुम वहां देखने जाओगे – करो जो भी ..|” बाकी शब्द मन में बडबडाती हुई वे निश्चित स्थान की ओर चल दी|
प्रसाद अभी सोच भी न पाए और दरवाजे पर वही नॉक नॉक सुनाई पड़ी| वे नज़र उठाकर दीवार घड़ी की ओर देखते है जिसमे रात के ग्यारह बजकर तीस मिनट हो चुके थे| बाहर कौन होगा वे चेक करने दरवाजा खोकर देखते है तो सामने कोई तीस साल का आदमी खड़ा था जो सपाट भाव से कह रहा था – “हम सामान के साथ ही आ गए है – वो क्या है कि आज तीस तारिख है पिछले मकान को आज ही खाली करना था वरना कल की एक तारिख से पूरे महीने का किराया देना पड़ता तो क्या हम आज ही शिफ्ट हो जाए ?”
प्रसाद अब पूरी दृष्टि से उस आदमी को तो उसके पीछे खड़ी महिला को देखता है जो उसकी पत्नी लग रही थी, इतनी रात कोई शिफ्ट करता है पर वह उनकी परेशानी समझ रहा था वह इतना कठोर ह्रदय का भी नही था पता था इस महानगर में एक एक दिन का किराया देना पड़ता है और उसे फर्क भी क्या पड़ता है इस महीने का पूरा किराया उसे मिलना था अब चाहे चार दिन बार शिफ्ट करता या पहले वह अभी ये सब सोचता मन ही मन सबका गुणाभाग बैठा ही रहा था कि कोई महीन आवाज फिर उसके कानों से टकराई –
“अंकल |”
वह अब आवाज की दिशा में देखता है जहाँ अभी तक उसका ध्यान गया भी नही था उसके सामने खड़े आदमी में आगे उसकी टांगो से लगा उसका सात वर्षीय लड़का उसे उसकी तन्द्रा से बाहर कर रहा था जिससे वह चौंकता हुआ हडबडाता हुआ कह उठा –
“हाँ हाँ ठीक है – शिफ्ट हो जाओ और एग्रीमेंट कल सुबह बनवा लेंगे – अच्छा कुछ मदद करूँ कि कर लोगे ?”
उनके सपाट चेहरों को समझते हुए वह पूछता है उसे अहसास हो रहा था कि एक ही दिन में पूरा घर शिफ्ट करने से उनकी ऐसी हालत हो रही होगी |
“हम सब खुद कर कर लेंगे कोई जरुरत होगी तो बता देंगे आपको – थैंक्यू |” अबकी औरत कहती है जिससे मुस्करा कर आश्वस्त होता प्रसाद कुछ पल उन्हें दरवाजे पर खड़ा छोड़कर फ़्लैट की चाभी लेने अंदर चला जाता है और अगले ही क्षण चाभी के साथ वापिस आते उसे उन्हें सौंपकर वापस घर के अन्दर चला जाता है|
अपने कमरे में वापिस आते सोई हुई पत्नी को पुकारते हुए कहते है – “सुनती हो – नया किरायदार आया है – अभी इसी वक़्त शिफ्ट करना चाहते है – मैंने भी हाँ कह दिया आखिर दुबे के जानने वाले है - अब हर महीने का नौ हज़ार फिक्स - |”
पत्नी हलके से हूँ करती लेटी रहती है जैसे इन सबसे उसे कोई मतलब ही न हो|
अभी कुछ पल को नींद लगी ही थी कि उनका मोबाईल बज उठा और वे कुनमुनाते हुए उसे उठाकर अपने कान के पास सटाकर रख लेते है उधर से आवाज आती है – “प्रसाद सो गए थे क्या ?”
प्रसाद इस नींद में जगाकर सो गए पूछने वाली बात से झुंझला उठे पर अधकचरी नींद से बस हूँ कहकर बात आगे सुनने लगे|
“अच्छा एक नया किरायदार बता रहा हूँ अकेला लड़का है और बस छह महीने के लिए फ़्लैट चाहता है और ग्यारह भी देने को तैयार है बता कल भेज दूँ उसे तुम्हारे घर ?”
“क्यों पिछले वाले में क्या दिक्कत है – बात तो हो गई न पक्की उससे !” निन्दासी आवाज में प्रसाद कहता है|
तो उस पार से प्रतिक्रिया आती है – “अरे दिक्कत कोई नही बहुत बढ़िया आदमी था और मैंने तुमसे बात कर उसे पक्का भी कर दिया जिससे वह दोपहर से ही सारे सामान और परिवार के साथ निकल लिया तुम्हारे पास आने को पर रोड एक्सीडेंट में बिचारा नही बचा – सारा परिवार ऑनस्पॉट सड़क पर खत्म हो गया – बड़ी बुरी घटना हो गई भाई – अब तुमसे क्या कहता इसलिए दूसरे किरायदार का इंतजाम होते तुम्हे फोन कर रहा हूँ – हेलो हेलो प्रसाद सुन रहे हो – क्या हुआ – ओहो सो गया होगा – ये बुड्डा भी न |”
उधर से अपनी बात कहकर दुबे द्वारा फोन काट दिया गया पर उसके विपरीत प्रसाद का चेहरा सफ़ेद पड़ चुका था उसका खून बहते बहते जैसे जम सा गया उसकी नींद तो पल में गायब हो गई वह बस फटी आँखों से मोबाईल पकडे शून्य में ताकता रहा तभी कोई आवाज उसकी तन्द्रा भंग करती है और उसके कान कोई नॉक नॉक सुनते है| आवाज लगातार आती रहती है जिससे उसकी पत्नी पति की ओर बिना देखे ही अपना हाथ बढाकर उसे झंझोड़ती हुई कह रही थी – “अब जाओ न देखो जाकर – फिर किरायदार होगा – तुम्ही ने रखा है तो तुम्ही झेलो – देखो अब क्या हुआ है उनके साथ – जाओ नहीं तो खट खट से सारा अपार्टमेंट उठ जाएगा |”
पत्नी की झिकड़ी से उन्हें मन मारे बिस्तर से उठना पड़ा पर उस पल उनमे अन्दर जो भी भाव उठा रहा था वे उसे शब्दों से बता भी नही पा रहे थे बस किसी रोबोट की तरह उठते हुए मुख्य दरवाजे की ओर बढ़ गए, दरवाजे पर नॉक...नॉक की आवाज अभी भी आ रही थी, पर अब उनकी हिम्मत नही हो रही थी कि दरवाजा खोले बस मूर्ति की तरह उस बंद दरवाजे के सामने खड़े थे| पर उस पार की आहट से जैसे उनका होना कोई जान चुका था और अपनी दोहरी आवाज में कह रहा था – “हमे आपका फ़्लैट बहुत पसंद आया – अब हम यही रहेंगे |”
आवाज अपनी बात कहकर यूं शांत हो गई जैसे कही लुप्त हो गई हो और इस पार खड़े प्रसाद के पैर बुरी तरह से लडखडा गए थे|
अब हर रोज वह रात में यही नॉक नॉक सुनता था पर बढ़कर दरवाजा खोलने की उसकी हिम्मत नही होती थी|
समाप्त....