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पैसे और रिश्ते

15 जून 2017

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मैं एक ऐसे परिवार का सदस्य हूँ जहाँ पैसा एकदम नगण्य माना जाता है जिसकी अहमियत सिर्फ और सिर्फ उसकी जरूरत पर समझ आये और उससे ज्यादा कुछ नहीं। कभी भी उसे रिश्तों से उठने ही नहीं दिया। पैसो से बने रिश्तों की गारंटी नहीं होती मगर जो रिश्ते एक बार दिल बन जाये तो ये धन दौलत सब बेकार की बाते होती हैं। ज़माने में जहाँ पैसों के बाद सबकुछ आता है वहीँ हमारे यहाँ सबकुछ पैसों के पहले आता है। सारी फसाद लड़ाई झगड़े और रिश्तों के मध्य खिची दीवार की जड़ पैसा है नहीं तो गरीब को इस लफड़े में पड़ते कहाँ देखा?? महज चंद रुपयों के वास्ते आज रिश्तों में सुराग होने लगे। आज का इंसान पैसों के नजदीक और अपनों से दूर जा रहा है। भला इस जमाने में पैसे कमाने की होड़ किसे नहीं मगर अपनों को छोड़ शामिल इस दौड़ में हम नहीं।।

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