नीता हर दिन की तरह सब्जी लाने बाज़ार जा रही थी कि रास्ते में उसका पैर एक पत्थर से टकराया। “आह!” बेसाख्ता ही उसके मुंह से एक चीख निकल पड़ी। वह गिरते-गिरते बची थी।
अभी पत्थर उठा कर एक ओर रखने के लिए वह नीचे झुकी ही थी कि उसकी नज़र वहीँ पास ही पड़ी चांदी की पायल एक जोड़ी पर पड़ी। नीता ने इधर-उधर देखा। उसे वहां कोई दिखाई न दिया। उसने झट से वह पायल उठा कर अपने पर्स में रख ली और बाज़ार चली गई। सब्जी लेकर बाज़ार से लौटते हुए वह सोचने लगी – “ न जाने यह पायल किसकी होगी”।
“जिसकी भी होगी मुझे क्या। मुझे जब मिली तब तो वहां कोई नहीं था। शायद यह भगवान का संकेत ही है। इससे कुछ रुपयों का इंतज़ाम तो हो ही जाएगा।” उसने अपने मन को समझाते हुए कहा। नीता पहले से ही घर के किराये को लेकर परेशान थी। अभी एक हफ़्ते पहले ही तो रामबाबू किराया मांगने आए थे और घर खाली करने की धमकी दे रहे थे। कितना रोयी, कितना गिड़गिड़ाई थी वह, तब जाकर कहीं वे एक हफ़्ते और इंतजार करने को माने थे। और कल वो मोहलत भी पूरी हो जाएगी। अभी तक तो एक धेला भी नहीं जुटा पाई है वह किराए के लिए। जो तनख्वाह मिली थी, वह तो कब की गुड़िया के इलाज में खर्च हो चुकी थी। अब अगर कल तक किराया नहीं दिया तो घर खाली करना ही होगा। फिर कहां जाएगी वह? एकाएक कितने ही सवाल कौंध गए थे उसके दिमाग में।
“ इस पायल को बेचकर किराया देने जितने पैसे तो मिल ही जाएंगे।” वह मन ही मन योजना बनाने लगी। पर उसकी ईमानदारी उसे बार-बार ऐसा करने से रोक रही थी। मन में एक अंतर्द्वंद्व सा छिड़ गया। एक तरफ उसकी ईमानदारी तो दूसरी तरफ उसकी गरीबी।
नीता पूरा दिन इसी उधेड़-बुन में लगी रही। “मुझे तो पता भी नहीं है यह पायल किसकी है।” उसने फिर अपने मन को समझाते हुए कहा। परिस्थितियां उसकी ईमानदारी और सच्चाई पर हावी हो रही थी। देखते ही देखते शाम हो गई।
वह पानी लेने के लिए नगरपालिका के नल पर गई तो पूजा की मम्मी अपनी सहेली से बात कर रही थी। “न जाने इस पायल की एक जोड़ी कहाँ गिर गई है। सुबह से मिल ही नहीं रही है।" यह सुनकर नीता का चेहरा फ़क्क पड़ गया। “यही तो है वह पायल जिसकी दूसरी जोड़ी आज सुबह मुझे मिली थी।”
पूजा की मम्मी- प्रेमा जी उसकी पड़ोसन हैं। उसकी की प्रेमा जी से बहुत बनती भी है। अभी वह कुछ सोच - समझ पाती इसके पहले ही उसके मुंह से झट निकल पड़ा- “मुझे मिली थी इस पायल की एक जोड़ी।"
"यह क्या ! बिना कुछ सोचे-समझे मैंने यह क्या कह दिया।” वह हतप्रभ थी। बेमन से ही नीता ने वह पायल की जोड़ी लाकर प्रेमा जी को दी और एक फीकी सी मुस्कान से उनका अभिनंदन किया।
प्रेमा जी पायल की जोड़ी पाकर बहुत खुश हुई और उन्होंने नीता को धन्यवाद भी कहा। आज उनके लिए नीता की दोस्ती का कद और भी ऊंचा हो गया था।
नीता को अब भी समझ नहीं आ रहा था कि यह उसने क्या कर दिया। पर अब वह कर भी क्या सकती थी, तीर तो कमान से निकाल चुका था।
उस दिन पूरी रात नीता यह सोचती रही की अब वह घर का किराया कैसे देगी? वह रामबाबू से क्या कहेगी? अगर उन्होंने घर खाली करने को कह दिया तो फिर वह अपनी आठ साल की बच्ची को लेकर कहाँ जाएगी?
खैर वक़्त कहां टलने वाला था। आखिर रामबाबू आए, और किराया ना देने पर नीता को घर खाली करने की धमकी देने लगे।
नीता ने हाथ जोड़ते हुए उनसे विनती की, "मुझे कुछ दिन की मोहलत और दे दीजिए। मैं आपका किराया चुका दूंगी। इस बार आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी।"
पर रामबाबू कहां सुनने वाले थे। " देखो नीता, मैंने यहां कोई धर्मादा नहीं खोल रखा है। घर में रहना है तो किराया दो, वरना अपना रास्ता नापो। मैं और मोहलत नहीं दे सकता।" उन्होंने सख्त स्वर में कहा।
अभी दोनों में कहा-सुनी हो ही रही थी कि प्रेमा जी निकल आईं। "अरे क्या हुआ राम भैया, सुबह - सुबह किस बात पर इतना गुस्सा कर रहे हैं?"
"अरे क्या बताएं प्रेमा जी। पता नहीं कहां - कहां से लोग चले आते हैं। किराया देने की औकात नहीं है और कमरा भी चाहिए।" उन्होंने शिकायती लहजे में कहा।
प्रेमा जी ने एक नजर नीता की ओर देखा। उसकी पनिली आंखें शर्म से झुक गई थी। प्रेमा जी कुछ देर उसे देखती रहीं फिर कुछ सोचकर घर के अंदर चली गईं और कुछ देर बाद हाथ में कुछ रुपए लेकर पुनः लौटी। रुपए रामबाबू की तरफ बढ़ाते हुए उन्होंने कहा “ यह रहा नीता का इस महीने का किराया। अब तो उसे घर खाली नहीं करना होगा ना? अब तो कोई शिकायत नहीं है ना आपको भैया? अरे नीता, कितनी भुलक्कड़ हो तुम, तुमने अभी दो दिन पहले ही तो मुझे यह रुपए उधार दिए थे और अब तुम्हें याद भी नहीं।”
रामबाबू ने चुपचाप ना में सिर हिलाते हुए किराया लिया और वहां से चले गए।
नीता हैरान हो देखती ही रह गई। उसने जब प्रेमा जी से पूछा तो उन्होंने हँसते हुए कहा – “अरे उधार है। जब तुम्हारे पास हो तो वापिस कर देना।” नीता की आँखों से आंसू छलक पड़े। उसे अपनी इमानदारी का फल मिल चुका था।
उसे अब समझ आ गया था की ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं होता। पायल की जोड़ी लौटाकर वह अपनी ही नजरो में चोर बनने से भी बच गई थी और उसे घर भी खाली नहीं करना पड़ा था। यही नहीं प्रेमा जी के साथ उसका रिश्ता भी गहरा हो गया था।
खुशबू बंसल