प्रेम का नगर
तुम तोड़ दो हेय की उस दीवारों को
जो रोकती हैं तुम्हें अपना कहने से किसी को
तुम जोड़ लो ईंट प्रेम की
जो खड़ी करें नींव विश्वास की ।
रंग से न पहचानों किसीको
भाषा का न हो भ्रम जाल कोई
न मनें अपनत्व की दीपावली
ऐसा न बीते साल कोई ।
हों विश्वास की दीवारें
हों उम्मीदों के रोशनदान जहाँ
लड्डू प्रेम के बट जाएं
हो स्वादिष्ट सादगी का खानपान जहाँ ।
विश्वास की ही हो मंज़िल
विश्वास की ही हो हर डगर
चलो बसाते हैं मिलकर
प्रेम से भरा एक नगर ।
©® Devanshu Tripathi
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सप्रेम नमस्कार मेरे मित्रों को ।💐💐💐💐💐