विश्व का एक मात्र उदारण जो पेड़ों के लिये अपनी कीमती जान देना वह् 363 अमर शहीद विशनोई जो अमृता देवी की अगवाई में हुआ जोधपुर नरेश ने किले की चिनाई के लिए चुना पकाने के लिए लकड़ी लाने का आदेश् दिया उनके सैनिक लकड़ी लेने के लिए निकले तो खेजड़ली गांव में बहुत खेजड़ी के पेड़ देखे तो उसे काटने लगे यह देख विशनोई समाज के लोग वहा पहुचे और खेजड़ी काटने का मन किया तो भी सेनिक नही रुके और खेजड़ी की तरफ आगे बढ़े तो अमृता देवी ने कहा हम खेजड़ी नही काटने देगे जब सेनिक ने खेजड़ी काटने के लिए कुल्हाडी उठाई तो अमृता देवी खेजड़ी से चिपक गई इस तरह एक एक कर के 363 विशनोइयो ने अपना बलिदान दे दिया पर पेड़ नही काटने दिया जब राजा को मालूम हुआ तो वह खेजड़ली गांव पहुचे यह सब देख राजा बोले हें विशनोई बन्धुओ मुझे माफ़ कर दो मुझसे भूल हो गई राजा ने एक ताम्र पत्र लिख कर कहा की आज के बाद बिश्नोईयों के खेत से कोई पेड़ नही कटेगा