shabd-logo

प्यासा...

20 सितम्बर 2021

31 बार देखा गया 31
मेरी शिकायतों पर कहा उसने "चले जाओ"....
मैं कैसे समझाऊं उस नादान को, कि कोई प्यासा दरिया से दूर आशियाना बनाता है क्या ?

मैं तो बंजर ज़मीं का वो दरख़्त हूँ यहीं फ़ना हो जाएगा, कोई मुसाफिर नहीं जो आज यहां और कल वहां ठहर जाता है....!

Rupesh Pratap Singh की अन्य किताबें

किताब पढ़िए