वो कहते हैं कि चूड़ी की खनखन सुन ले,
रुनझुन सुनले पायल की,
आंखों का आंचल सुन ले,
खुशबू सुन ले सैंधल की,
सुन ले जो प्रेयसी की खातिर ताजमहल बनवाते हैं,
राज धर्म को छोड़ कभी जो जुल्फों में खो जाते हैं,
वासना नृतन करती महलो की प्राचीर सुनो,
ओ वैशाली की नगर वधू ओ दिवाने जहांगीर सुनो,
वर्धमान कब नस्तक है इन सारे किरदारों पर,
इतिहास सलामी देता बिस्मिल राजगुरू खुदारो पर,
जिसने दुश्मन से आँख मिला समसिरे तानी होती है,
सच्चे अर्थों में उसी की धन्य जवानी होती है ||