
मेरे सब रिश्ते मुझसे खफा खफा से रहते हैं, कुछ तो टूट फूट से गए हैं, कुछ सिर्फ नाम के रह गए। सबके साथ ऐसा है तो कमी मुझमें ही होगी,रिश्तों को निभाने की मैंने हमेशा ही इमानदार कोशिश की है मगर फिर भी ….शायद मुझे प्यार जताना नहीं आता, या शायद मैं रिश्तों को लेकर ज्यादा ही भावुक हो जाती हूँ ….
शायद भावुक ही हूँ ज्यादा, कहाँ लकीर खींचनी है पता ही नहीं चलता मुझे, असल में आता ही नहीं है जिनसे प्यार करती हूँ उन के लिए खुद की हदें बढाती चले जाती हूँ। मगर यह सही तरीका नहीं है, हो सकता है मेरी नजर में जो प्यार है, प्रवाह है वो सामने वाले को घुटन का अहसास देता हो।
शायद यह समझना जरूरी है कि हम सामने वाले के लिए क्या और कितनी अहमियत रखते हैं, और उसी हिसाब से रिश्ते में आगे बढ़ना चाहिए, ऐसा करने से शायद दुख कम होता होगा ……
मैंने कभी बहुत अपेक्षा नहीं रखी रिश्तों से, रिश्तों में, मगर फिर भी हर रिश्ता खफा है….. कहाँ कमी है, समझ नहीं पा रही। हर कोई जाते जाते ये बता जाता है, या अहसास करवा जाता है कि उसके दूर जाने की वजह खुद मैं हूँ, जो किया रिश्तों की खातिर वो किसी को याद नहीं जो नहीं किया वो याद है । क्या कोई इस कदर गैर जरूरी हो सकता है, क्या कोई इतना नाकामयाब हो सकता है कि इतने साल के रिश्तों में इतना भी खुद को न कायम कर पाए कि किसी को उस के होने न होने से कोई फर्क ही न पडें।
मैंने इतने सालों में किसी की भी जिंदगी में ऐसी जगह नहीं बना पाई कि मेरे न रहने से फर्क पड़े,मतलब मैं हूँ या नहीं सब एक जैसा ही है…….pratyaya