मंद एवं उबाऊ
आज की तेज भागती दुनिया में शब्दनगरी जिस धीमी गति से काम कर रही है उस से कही ज्यादा मुझे हिंदी की रफ्तार तेज प्रतीत होती है।लोग एक 'ग' ,दो 'ग',नहीं बल्कि चार 'ग' के यंत्रों का प्रयोग कर पाँच 'ग' की फिराक में हैं,परंतु शब्दनगरी पुन:तार वाली कहानी कह रही है।कुछ तो करिए भाईसाहब।।।