तुम कहने के पहले सोचती क्यूँ नहीं :)
ना शिकायत मुझे तुमसे है, ना ही समय से, ना किसी और सेबस है तो अपने आप से हर बार हार जाती हूँ तुम से तो झगड़ती हूँ मन से रूठकर मौन के एक कोने में डालकर आराम कुर्सीझूलती रहती अपनी ही मैं के साथ !... कभी खल़ल डालने के वास्ते आती हैं हिचकियाँ लम्बी-लम्बी गटगट् कर पी लेत