रक्षाबंधन दोहे
रक्षाबंधन नेह डोर ऐसी बंधी, जिसका कहीं न मोल ।त्याग और अनुराग का , रिश्ता ये अनमोल ।।भावों का गुंथन हुआ, जाग उठा उल्लास ।कच्चे धागे ने किया . पक्का मन विश्वास ।।राखी के त्यौहार ने, कर डाला अनमोल ।वरना धागे का रहा, दो कौड़ी का मोल ।।भरी सभा में द्रौपदी, बांध गई जो डोर ।भरी सभा में कृष्ण ने , दिया न उ