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साया

11 मार्च 2016

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हर तरफ धुंध है,
कोहरा सा छाया,
या मन का भरम है,
वो धुंधला सा साया ।

यादों की टीस से,
ऐंठता है बदन,
जब भी आता है,
ठंडी हवा का झोंका ।

मुद्दतें गुज़रीं,
मुलाक़ात हुए,
हमसाया थे जो,
हमसफ़र ना हुए ।

अब तो तन्हाई है,
मालिक मेरी,
जब से मेरी रूह के,
वो रहबर ना हुए ।

हर तरफ धुंध है,
कोहरा सा छाया,
या मन का भरम है,
वो धुंधला सा साया ।

( 14/09/11 को मनोज वशिष्ठ द्वारा रचित )

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