में एक छात्र हूँ
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मैं डरता हूं हिंसा सेनारी के अपमान सेझूठ से बुराई सेउस हर चीज से जोमुझे बना देती हैवान है।
लुटती इज्जत आज आम हैघर या बाहर हर जगह हैवान हैनारी आज भी परेशान हैआजादी को इतना वक्त हो गयाफिर भी नारी असुरक्षितहिंसा पति की सहती,तानाशाही पिता की जारी है..
कहा चैन कहा अमृत है स्क्रीन का जमाना यहां सब भिन्न है फुरसत कहा आस पास नजर फेरने की आभासी दुनिया में जब चित है नए लोग नए लाइक क्या कहूँ आज की यही लाइफ है। सीताराम कवि