शब्दनगरी में ये मेरी पहली पोस्ट है. फेसबुक छोड़ कर यहाँ आना महज अपने भीतर कि उदासी, बेचैनी या निराशा से निजात पाने का जरिया भी हो सकता है पर फेसबुक से कुछ दिन के लिए डिटॉक्स होना जरुरी लगा.लेकिन क्या करू ब्लॉग लिखने की आदत जो ठहरी ये किसी नशे से काम थोडी है ..जैसे एक मैखाने के बंद होने पर हम नया मैखाना तलाश लेते है शायद कुछ ऐसा ही है ये भी..इसीलिए शायद हम ब्लागर्स के लिए उदासी से से निकलने का सबसे सहज तरीका गुप्प अकेले कमरे में बैंठ कर ब्लॉग लिखना ही है..
फेसबुक से अलग जगह ढूंढ़ते हुए कई बाते दिमाग में आयी.पहली क्या पुराने दिनों की तरह खुद का ब्लॉग बनाया जाए नहीं उतनी मेहनत की हिम्मत नहीं है अभी..अविनाश के महोल्ला लाइव पर जाने का दिल किया पर याद आया कि कभी गुलजार रहने वाला महौल्ला तो अब सुनसान पड़ा है सब तो फेसबुक पर आ चुके है.फिर फिर एक बार ब्लोगर्स डाट काम पर विजिट किया अधूरे मन से लेकिन जब मन साथ ही न हो तो हिम्मत कहा होती है नयी वेबसाइट बंनाने कि .तो अंत में गूगल सर्च बार में हिंदी ब्लॉग डाला और आ गए यहां है ये इत्तफाक ही हो सकता है कि शब्दनगरी के होम पेज पर आकर एक अलग अनुभूति हुई न चाहते हुए भी बीएस साइनअप किया और बना लिया पेज .फिलहाल तो इतना ही पर आटा हु जल्द ही कोशिश होगी अपने रोज कि डायरी यहाँ लिखने कि .असफलता के दिनों की डायरी..