जब नाम भी दूसरे का दिया | और जज्बात भी | मैं ये वह नहीं हूँ जो पैदा हुई थी |
सफर का पता है, और मंजिल बेबसी | इतना जान लीजिए |
निःशुल्क
पढ़ते पढ़ते जिन्दगी को, कुछ लिखने को मिल गया |
भजन मंडली ने एक भजन छेड़ रखा था | रात मे खेत में पानी लगाते रामू के कानों में शब्द किसी रस की भांति प्रवेश कर रहे थे | " कहत कबीर सुन है साधो पाप लगे यहाँ आध