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ट्रेन का जनरल डिब्बा

27 जनवरी 2023

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ट्रेन के जनरल कम्पार्टमेंट या कहे तो जनरल डिब्बा, में सफर का अनुभव कुछ अलग ही होता है। उस डिब्बे में आपका सामना अलग-अलग किरदार से होता है, जिनमें कुछ मजाकिया, कुछ गुस्सैल, कुछ बातुनी एवं कुछ एकदम शांत लोग होते हैं। कुछ दिन पहले किसी काम से कोलकाता गया था। काम अधिक रहने के कारण स्टेशन पहुंचने में देर हो गयीं एवं जिस ट्रेन से वापस लौटना था, वह ट्रेन जा चुकी थी। पूछताछ केन्द्र पर पता करने पर मालूम हुआ कि रानीगंज जाने लिए अगली ट्रेन, दानापुर एक्सप्रेस (अभी का नाम राजेंद्रनगर एक्सप्रेस) रात 8.30 बजे प्लेटफार्म न. 7 से खुलेगी। हम तीन साथी थे, हमलोगों ने घड़ी की ओर देखा तो 8.15 हो गए थे, अब हमलोग फटाफट जनरल कम्पार्टमेंट का टिकट कटा, 7 न. प्लेटफार्म पर पहुंच गए। प्लेटफार्म पर ट्रेन पहले ही लग चुकी थी एवं लगभग सभी यात्री ट्रेन में सवार भी हो चुके थे। हमलोग पहले जनरल डिब्बे में सवार हो देखा पुरा सीट लोगों से भरा है, डिब्बे में थोड़ी दूर और आगे बढने पर देखा की एक सीट पर एक व्यक्ति के बैठने लायक जगह है। हमलोग उस सीट के समीप जाकर देखा की एक महिला ने अपने दो छोटे बच्चों को सीट पर बिठा रखा है। हमलोगों ने उनसे अनुरोध किया अगर आप एक बच्चे को गोद में लेकर बैठ जाये, तो हमसभी यहां बैठ जायेंगे, महिला ने साफ इनकार करते हुए कहा की आपलोगों दूसरी जगह तलाश करें, बच्चा जिद्द कर रहा है कि वह सीट पर ही बैठेगा। हमने कहा, ट्रेन चलने पर वह सीट से निचे गिर जायेगा, कारण वह तो सीट पर बैठने लायक ही नहीं। महिला ने कहा, “हम कछु नईखे जानित, बच्वा सीटिय पर बैठी”। अभी सीट समझौते पर बात चल ही रही थी कि पास बैठा एक व्यक्ति बोल पड़ा, आपलोगों दूसरी जहग देख लिजिए, इसके बाद लागातार चार बोगी ही जनरल है, दुसरी बोगी में आपको बहुत खाली सीट मिल जायेगें। हमलोग भी दूसरी जगह की तलाश में चल पड़े। दूसरा डिब्बा भी पुरी तरिके से भरा था। हमलोग तीसरे डिब्बे में दाखिल हुए एवं एक सीट के समीप पहुंच देखा की आमने-सामने की दोनों सीटों पर चार-चार लोगों बैठे हैं, बैठे लोगों से पूछा कि यहां पर बैठ सकते हैं क्या ? एक तरफ के सीट वाले बोले, बैठ जाइए, कुछ घंटों के हम उतर जायेंगे, कोनसा हमको सीट घर ले जाना है, दूसरी तरफ वालों लोग भी न न करते मान गए, यहां सफलता मिलती नजर आई एवं तीसरी सीट उसके बाद वाली लाइन मिल गई । उस डिब्बे में हमें बैठने लायक जगह मिल गई। हमलोग भी अपनी-अपनी सीटों पर बैठ गए। हमारे साथ जो लोग बैठे थे उनमें से अधिकांश लोग ही मजदूर थे। सभी किसी न किसी काम से अपने-अपने घर बिहार जा रहे थे।ट्रेन अब भी हावड़ा स्टेशन पर ही खड़ी थी, ट्रेन को छुटने में कुछ मिनट का समय अभी शेष था। इतने में हमलोग जहां बैठे थे, वहां दो लोगों में बैग रखने को लेकर झगड़ा हो गया, दरअसल हुआ ये कि खिड़की के समीप बैठे व्यक्ति का बैग उपर रखा था एवं  मेरे सामने बैठा व्यक्ति उसकी बैग को थोड़ा सा खिसका कर अपना बैग वहां रखा दिया। यह देखते ही खिड़की के पास का व्यक्ति जोर से बोला "मेरे बैग को कहे घसकाये जी, उसमें फूटने वाला समान है, अगर फुट जायेगा, तो तुम देगा"

दुसरा व्यक्ति बोला "नहीं घसकायेगे तो हम अपना बैगवा कैसे रखें, तु पुरा ट्रेन का रजिस्ट्री करा लिया है का, आर फुटे वाला समान है तो अपन गोदिया में बैगवा लेके बैठ" बोलते हुए मुझसे बोला, लाइए आपका बैगवा भी उपर रख देते हैं और मेरे बैग को उपर रख दिया, अब एक दूसरा व्यक्ति बोला, कहे झगड़ा करते हैं भाई , कुछ घंटों की बात है, सभी अपने-अपने जगह उतर जायेगें कहते हुए, मामला शांत करया, इधर ट्रेन भी चलना शुरू कर दिया था। अब जिस व्यक्ति ने बैग उपर रखा था, दबी आवाज में मुझसे कहा " उ बोल रहा है कि ओकर बैगवा में फुटे वाला समान है, बैगा के घसकौलिय ने बाबू, तो बैगा बहुत भारी लगलौय, लगो है बैगा में लोहा-लकड़ भरले है"।

मैंने उस व्यक्ति से पूछा, आपको कहां जाना है, बोला, “गिरीडीह जयबो, मधुपुर टीसन पर उरत के फेर बस पकड़बो”। मैं बोला कोलकाता में क्या करते है? जवाब मिला, “जोगाड़ी मजदूर हीये बाबू, काम करेले कलकत्ता आलिओ, काम नय मिलऔ,अब घुर के घर जा हीओ”। ट्रेन ने अब पुरी रफ्तार पकड़ ली थी। सभी अपने-अपने बैगों से जैकेट, मफलर एवं टोपी निकाल अपने-अपने शरीर को ढक लिया। कारण काफी ठंडी हवाएं ट्रेन के अंदर आ रही थी। सभी लोग खुली खिडकियों को बंद करने को कहने लगे। सभी ने अपनी-अपनी खिडकियों को बंद कर दिया। अब हमारे पास जो व्यक्ति खिड़की के पास बैठा, जिससे बैग रखने को लेकर झगड़ा हुआ था, ने अपनी खिड़की तो बंद कर रखी थी,फिर भी उसे ठंडी हवाएं लग रही थी कारण खिड़की बंद होने पर भी थोड़ी सी खुली रह ही जाती है जिनसे हवाएं आती है, अब उसे ठंड लगना शुरू हुआ, बेचारे ने कुछ पहन भी नहीं रखा था। खिड़की से आती ठंडी हवाएं को रोकने के लिए वह पेपर को मोड़ कर खिडक़ी की दरारों में लगा दिया, थोड़ी देर के लिए ठंडी हवाएं तो जरूर बंद हुई परंतु थोड़ी ही देर में हवांओ की गति के सामने पेपर टीक न पाया एवं पेपर उड़ गया। अब उसके पास पेपर भी नहीं था। यह सब गिरीडीह जाने वाला व्यक्ति- जिससे पहले उसका झगड़ा हो चुका था, देख रहा था। उससे रहा नहीं गया, उसने अपने बैग से एक गमछा और एक बेडशीट निकाल, गमछे को खिड़की में लगा पहले ठंडी हवाओं को बंद किया एवं बेडशीट उसे ओढने के लिए देते हुए बोला " ले ओढ ले, ठंडा नय लगतओ" वह भी बेडशीट लेकर ओढ कर बैठ गया एवं दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। मैंने मन ही मन सोचा यही मजदूर है अभी झगड़ा- अभी दोस्ती एवं मदद करने की बात आए, तो वे अपने दुश्मन का भी मदद करने में पीछे नहीं हटते और सदैव तत्पर रहते, मन ही मन उस व्यक्ति को सलाम किया।

खैर, ट्रेन अब बर्धमान स्टेशन पहुंच चुकी थी, ट्रेन रुकते ही समोसे वाला चढा, आवाज लगाया गरमा-गरम समोसे, बीस के तीन, रात के खाने का समय हो गया था, इसलिए सभी भूख लगी थी, सभी फटाफट समोसे खरीदने लगें, कोई इधर बुला रहा था, कोई उधर, इतने में ट्रेन चल पड़ी और समोसे वाला उतर गया, बहुत सारे लोग समोसे से बंचित रहा गए, परंतु  गिरीडीह वाले यात्री ने समोसे खरीदने में सफलता हासिल की और समोसा खाने के बाद बोला "गमर बोल के देलको, तीनगो में दुगो गरम आर एगो ठंडा हलो, चल ठीक हौ "। इतने में एक लिट्टी बेचने वाला आया, आवाज लगाई, गरमा-गरम लिट्टी चोखा खाइए, बीस रुपये के दो, साथ में चोखा, चटनी फ्री। अब समोसा वाले की उतर जाने के बाद, लिट्टी वाला ही बच गया था, सो सभी में लिट्टी खरीदने की होड़ मच गई। कोई इधर बुला रहा था कोई उधर, लिट्टी वाला बोला, घबराने की बात नहीं, हम रानीगंज तक जायेंगे, सबको मिलेगा, कहते हुए लिट्टी, चोखा एवं चटनी देना और बीस रूपये लेना शुरू किया। अब जिन्हें लिट्टी मिल चुका था, वे लोग लिट्टी खाते- खाते तरह तरह की मांग, लिट्टी वाले से कर रहे थे। कोई प्याज, कोई मिर्च, तो कोई चटनी की क्वालिटी ठीक करने की बातें कह रहे थे। अब एक व्यक्ति ने लिट्टी वाले से  लिट्टी देने को कहा, इतने में दूसरी तरफ से आवाज आई, लिट्टी वाले इधर आओ, लिट्टी वाले ने पूछा, कितना प्लेट चाहिए, उधर से आवाज आई, हमलोग 8 आदमी हैं सबको लिट्टी खाना है, अब लिट्टी वाला उस एक व्यक्ति को लिट्टी ना देकर, दूसरी तरफ चला गया एवं इसे  बोल गया, पहले उधर 8 आदमी को देकर आते हैं फिर तुमको देते हैं, कारण उन लोगों का मन बदल गया तो फिर लिट्टी नहीं खाएंगे और मेरा नुकसान होगा, इसलिए थोड़ी देर सब्र कीजिए, मैं तुरंत आता हूं।

इतने में एक दूसरा लिट्टी वाला आ गया। मगर इसके पास लिट्टी खत्म हो चुका था, केवल चोखा ही बच गया था, सो ये अपना बचा हुआ चोखा उसी लिट्टी वाले को दे दिया। उस लिट्टी वाले का चोखे का रंग सादा एवं इसके चोखे का रंग पिला था। अब झमेला तब शुरू हुआ, उन आठ लोगों में चार को सादे रंग का चोखा दिया एवं चार को पीले रंग वाला चोखा दिया। अब एक व्यक्ति, जिसे सादे रंग का चोखा मिला था, वह चिल्ला कर बोला "अबे हमको रंगीन चोखा नहीं दिया, सादा वाला धरा दिया, हम कम पैसा दिये हैं क्या? अब लिट्टी वाला उसे समझने लगा रंगीन चोखा नहीं है भाई, उसमें केवल हल्दी मिला है इसलिए पीला हो गया है, दोनों चोखवा एके है भईवा, वह व्यक्ति बोला हम कुछ नहीं जानते हमको रंगीन चोखा दो, फिर उसने उसे पीले वाला चोखा दे शांत किया। इतने में हमारा गन्तव्य रानीगंज स्टेशन आ गया और हमलोग ट्रेन से उतर गए।

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