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प्राचीन मंदिरों का शहर विष्णुपुर ।

28 जनवरी 2023

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वे कहते हैं न कि "अपने पिछले इतिहास, उत्पत्ति और संस्कृति के ज्ञान के बिना, एक व्यक्ति जड़हीन वृक्ष के समान होता है।" किसी ने बताया कि विष्णुपुर शहर को प्राचीन मंदिरों का शहर कहा जाता है एवं प्राचीन मल्लभूम  के नाम से जाना जाता है, मल्लभूम वह क्षेत्र है, जिसमें बांकुड़ा, बर्दवान का एक हिस्सा, बीरभूम, संथाल परगना, मिदनापुर और पुरुलिया का एक हिस्सा भी शामिल है। मल्ल राजाओं ने वर्तमान पश्चिम बंगाल के दक्षिण-पश्चिमी भाग और दक्षिण-पूर्वी झारखंड के एक हिस्से में विशाल क्षेत्र पर शासन किया। सो, अपने आसपास के स्थानों का इतिहास जानने की इच्छा को मन संजोय अपने कुछ साथियों के साथ निकल पड़ा बिष्णुपुर की ओर। बिष्णुपुर, पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के अंतर्गत आने वाला एक शहर है। उत्कृष्ट कला का प्रदर्शन करते कई ऐतिहासिक स्थलों को अपने अंदर समेटे विष्णुपुर शहर, रानीगंज से लगभग 86 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सुबह-सुबह ही साथियों के साथ निकल पड़ा विष्णुपुर की ओर। कुछ साथियों ने कहा कि  नाश्ता कर निकला जाए, तो कुछ साथियों का मत था कि नाश्ता भी रास्ते में ही किया जाए, यहां देखा गया कि जो साथी नाश्ता, रास्ते में करने की बात कह रहे थे उनकी संख्या अधिक थी, इसलिए स्वाभाविक रूप से अधिक मत वालों की ही जीत होती है। अब हम सभी गाड़ी में सवार हो चल पड़े। महज 15 मिनट चलने के बाद ही दामोदर नदी के ऊपर बने पुल को पार करते ही बोर्ड में लिखा पाया "बांकुड़ा जिला में आपका स्वागत है" यानी हम सभी बांकुड़ा जिला में प्रवेश कर चुके थे। हमारे साथियों में से दो बाकुड़ा जिले से ही थे इसलिए रास्ता भटकने की का कोई सवाल ही नहीं था, वे दोनों गाइड की तरह रास्ता दिखा रहे थे। लगभग एक घंटा के बाद हम लोग एक छोटे से बाजार के करीब पहुंचे, साथियों ने बताया कि यह जगह कंचनपुर नाम से जाना जाता है, यहां का चप, मुड़ी  काफी मशहूर है एवं  स्थानीय लोगों का प्रमुख नाश्ता भी है।  हम लोगों ने ठीक किया कि आज का नाश्ता कंचनपुर में ही होगा, हम लोगों गाड़ी साइड लगाकर उतर पड़े, सामने ही दुकान पाया, पूछने पर पता चला वहां सब खत्म हो गया है, केवल चाय ही बची थी, इसलिए हम लोग उस दुकान को छोड़ आगे की दुकान की ओर रुख कर लिया, दुकान पर देखा गरमा-गरम चप सीधे कड़ाई से निकलकर टोकरी में जा रहा था।  हम लोगों ने फटाफट चप, मुड़ी  का ऑर्डर दे डाला, हमारे एक साथी को चप नहीं खाना था, इसलिए वह पहले की दुकान जहां सब खत्म हो गया था, वही चाय, बिस्कुट खाकर हम सभी के पास आ बैठ कंचनपुर के बारे में बता ही रहे थे तभी  एक साथी ने उनको टोकते हुए कहा,  आपकी बात गाड़ी में बैठ सुनेंगे, पहले हम लोग नाश्ता कर ले कह, दुकानदार को तुरंत हमारे द्वारा ऑर्डर किया गया सामान देने की बात कही,  दुकानदार बोला, पहले जो लोग लाइन में हैं उन्हें दे दूं फिर आप लोगों को गरमा-गरम चप तल कर दूंगा, चिंता मत कीजिए। हम लोग अब चुपचाप जप,मुड़ी का इंतजार करना शुरू किया, थोड़ी ही देर बाद दुकानदार ने साल के पत्तों में मुड़ी के साथ दो चप डाल सभी के हाथों में पकड़ा दिया।  सभी लोग चप, मुड़ी खाने के बाद चाय की दुकान की ओर रुख कर लिया, थोड़ी दूर पर ही चाय की दुकान थी। अब चाय  नाश्ता खत्म कर सभी फिर से एक बार गाड़ी में सवार हो गए। इसके बाद एक के बाद एक तीन नदियों (साली, गंधेश्वरी एवं कन्साबती) के ऊपर बने पुल को पार करते हुए हम लोग विष्णुपुर में पहुंच गए। विष्णुपुर पहुचने के बाद अब कहां से शुरू किया जाय, यह बात होने लगी तभी वहां उपस्थित एक स्थानीय व्यक्ति ने हमें बताया कि आप लोग पहले रासमंच जाये, वहां आपलोगों को 25 रुपये देकर टिकट कटाना होगा। उसके बाद उसी टिकट से ही आप विष्णुपुर के सभी दर्शनीय स्थलों को देख सकेंगे। हम लोग भी बिना देर किए पहुंच गए रासमंच के मुख्य द्वार पर जहां पर टिकट घर था, टिकट घर से हमलोग टिकट कटा  रासमंच की ओर चल पड़े।

रासमंच के समीप भारतीय पुरातत्व विभाग का एक बोर्ड लगा था उस बोर्ड में जो कुछ भी लिखा था वह हूबहू आपके समक्ष रख रहा हूं।" लटेराइट पत्थर के एक वर्गाकार मंच पर ईटों से निर्मित पिरामीड की आकृति जैसी चूडायुक्त यह स्मारक के मध्य भाग में एक छोटा सा गर्भगृह है, इसके तीनो दिशाओं में बरामदा है। इसका चारों दिशाओं में तीन मेहराबदार प्रवेश द्वार देखा जा सकता है। दक्षिण दिशा के प्रवेश द्वार के माध्यम से केंद्र स्थित गर्भगृह तक पहुंचा जा सकता है। कहावत है की यह स्मारक सन 1600 सी.ई. में बनवाया गया था। हालांकि, वेदी के सम्मुख भाग की सरंचना शैली और कई अन्य स्थापत्य विशेषताओं को देखते हुए यह प्रतीत होता है की यह और बाद में बनवाय गया है, संभवतः सत्रहवीं शताब्दी के अंत में। हर साल रास उत्सव के अवसर पर अन्य मंदिरों की मूर्तियों को यहां स्थापित करके पूजा करने के लिए इस रासमंच का उपयोग किया जाता था”। 

रासमंच की मोहक कलाकृतियों को देखने के बाद हम सभी बाहर आ विचार करने लगे कि अब  कौन सी जगह जाया जा, इतने में एक साथी ने रासमंच में तैनात सुरक्षा कर्मी से पुछा  कि यहां और कौन सी ऐतिहासिक जगह देखने लायक है। उसने बताया कि बाईं तरफ दलमादल कमान और कई मंदिर है, वहां जा देख सकते हैं। उसकी बात मानते हुए हमसभी पैदल ही चल पड़े। कुछ दूर जाने के बाद फिर एक व्यक्ति से पूछा कि दलमादल कमान किस तरफ है उसने रास्ता बताया, फिर हम सभी चलते-चलते वहां पहुंच ऐतिहासिक दलमादल कमान को देखा, वहां से कुछ कदम की दूरी पर स्थित छिन्नमस्तिका काली मंदिर को भी देखा। उसके बाद हमसभी चाय पी के लिए दुकान पर गए। दुकानदार ने सभी को चाय का कप पकड़ाते हुए पूछा, कहां से आये हैं , जबाव दिया, आपके के पास के ही जिले पश्चिम बर्दवान से, साथ ही पूछा और कौन सी जगह दर्शनीय है, उसने जबाव दिया यहां कुल 24 दर्शनीय स्थान है पर पैदल आप कुछ ही जगहें को देख सकते है, आपलोगों टोटो बुक कर लें, तभी आपलोगों आसानी से अधिकांश मुख्य-मुख्य जगहों को देख सकेंगे। हमसभी ने आपस में विचार किया कि बात तो यह चाय वाला सही कह रहा है, क्योंकि कुछ देर पैदल चलने में ही सभी इस सर्दी के मौसम में भी पसीने से भिग गए कारण सभी ने गर्म कपड़े पहन रखा था एवं धूप काफी तेज थी दूसरी ओर समय भी ज्यादा लग रहा था। अब हमसभी ने दो टोटो कुल चार सौ रुपये में बुक कर घूमना शुरू किया। सबसे पहले टोटो वाला हमसभी को लाल बांध ले गया। कहा जाता है कि बीर सिंहा देव के पास सात बड़े सरोवर या टैंक थे, जिन्हें लालबांध, कृष्णबांध, गंटटबांध, जमुनाबांध, कालिंदीबंध, श्यामबांध और पोकाबांध कहा जाता था, और खुदाई की गई थी। लालबांध के बगल में एक मंदिर भी है। इसके बाद वह हमें श्याम मंदिर ले गया। वहां भारतीय पुरातत्व विभाग के बोर्ड में लिखा था। "श्यामराय मंदिर ईंट निर्मित इस पंचरत्र मंदिर के चारों ओर एक बरामदा है जिसके प्रवेश के लिए तीन तोरण युक्त द्वार है। यह मंदिर टेराकोटा में अपनी अत्यधिक अलंकरण के लिए प्रसिद्ध है जो कि सम्पूर्ण मंदिर मे पायी जाती है। इस मंदिर का निर्माण मल्ल राजा वीर हंबीरा के पुत्र एवं उत्तराधिकारी रघुनाथ सिम्हा के द्वारा सन् 1643 ई में करवाया गया था। "इसके बाद हम लोग राधा श्याम मंदिर (1758 ई.में  महाराजा चेतन सिंह द्वारा बनवाया गया) , जोरबांग्ला मंदिर (1655 ई. में राजा रघुनाथ सिंह द्वारा बनवाया गया), गुमघर, राधा माधव मंदिर, काला चांद मंदिर, विष्णुपुर दुर्ग द्वार, पंचकूला मंदिर एवं राजबाड़ी के भग्नावशेषों को देखा।  गुमघर के बारे में टोटो चालक ने बताया कि यह घर राजा ने सजा देने के लिए बनाया था। इस घर में गया व्यक्ति फिर वापस लौट कर नहीं आता था इसलिए इसका नाम गुम घर पड़ा। घूमते घूमते दोपहर के 2 बज गए, हम सभी को जोरों की भूख लगी थी,एक साथी ने टोटो चालक से पूछा अभी और कितनी जगह देखने लायक है, टोटो चालक ने बताया क्यों वैसे तो अभी और भी कई है परंतु जो मुख्य मुख्य दर्शनीय स्थान थे आप लोगों को दिखा दिया। भूख के कारण हम सभी को भी और कहीं जाने की इच्छा नहीं हो रहे थी सो, टोटो वालों से कहा कि हम लोगों को हमारी गाड़ी के पास छोड़ दें। हम लोगों ने जहां अपनी गाड़ी पार्क की थी, वहीं पास में ही मिट्टी से निर्मित कई आकर्षक वस्तुओं की बिक्री हो रही थी हमारे कई साथियों द्वारा मिट्टी से निर्मित कुछ वस्तुओं की खरीदारी करने के बाद हम सभी गाड़ी में सवार हो रानीगंज की ओर निकल पड़े।  भूख जोड़ों की लगी थी इसलिए सभी के मन में एक ही सवाल खाने का होटल कहां मिलेगा।  कुछ दूर आगे बढ़ने के बाद ही हमें एक खाने का होटल दिखा, वहां पहुंच हम सभी ने खाना खाया उसके बाद रानीगंज की ओर निकल पड़े।

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