लघु कथा उम्र के निशाने पर शोध दामिनी शर्मा जब कॉलोनी में आई तो 35 वर्ष की विधवा के रूप में उसे देख कर लोगों को बहुत दुख हुआ वह अक्सर रात को 11:00 बजे घर से निकलती और सुबह 7:00 बजे घर वापस लौटती इस तरह उसके आने जाने के समय को देख कर लोगों को उसके ऊपर शक होने लगा कि आखिर किस जाति कहां है क्या करती है उसके विषय में सभी लोग सोचते रहते हैं एक प्रश्नवाचक चिन्ह उनके नाम के आगे लग जाता शक की सुई या लोगों के दिमाग में घूम रही थी वक्त बिता गया दामिनी इसी तरह अपने काम में मग्न रहा करती थी एक दिन कॉलोनी का एक आदमी बहुत बीमार हो गया बुखार से तड़प रहा था शाम होते ही उसकी हालत खराब होने लगी बहुत गंभीर हालत हो गई थी उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया रात होते-होते कॉलोनी के सारे लोग वापस लौट गए वह आदमी अकेला तंहा रह गया था अचानक जब उसकी नजर दरवाजे के खुले पर पर गई तो देखा की दामिनी शर्मा राई और वार्ड की तरफ जा रही थी तभी उसने नर्स से पूछा कि यह यहां क्या करती है उसने बताया कि यह सारी रात जागकर मरीजों की सेवा करती है और सुबह अपने घर चली जाती है इसका अपना कोई नहीं है इस जहां में शर्मिंदगी से मन भर गया उस आदमी का शक की कोई गुंजाइश बाकी न रहे शर्म से नजरें झुक गई थी अब समझ में आया कि अपने दर्द को भूल कर दूसरों की खुशियों में शामिल होने जाती थी दामिनी दूसरों को खुशियां देने जाती थी दामिनी रात के अंधकार में बारिश में तपती धूप में कभी भी हम किसी के बारे में कोई भी धारणा बना लेते हैं कोई भी सोच रख लेते हैं हम किसी के बारे में जानते भी नहीं पता नहीं कभी-कभी मैं सोचती हूं कि कैसे कैसे सोच के साथ जीते हैं लोग कहानीकार चल मैं श्वरी राव