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15 नवम्बर 2017

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बेतहाशा बेजुबान बागी सा बंदा, मूकबधिर न वो न आंखो से अंधा, खुद को यूं खो चुका मिल न पाया फिर, विकल्प और भी थे क्यूं चुना फांसी का फंदा। खबर फैली शहर में बदले नही थे खास हावभाव, बस माँ उसकी शोक मनाती कुछ अपने ही परेशान, कहीं कर्ज़दार तो नही था वो भावनाओं के ठेकेदारों का, मंदिर में भी हल मिल जाता पर क्यूं चुना उसने श्मशान। कारण स्पष्ट करने में ,मैं खुद को असमर्थ पाता हूं, गला भी गवाही नही देता जब राग रोदन के गाता हूं, दोहराना होगा ऐसा कभी तो ये किस्सा भी जुड़ जाएगा, जब भी गली से हो गुजरना उसके तो उसकी माँ से जरूर मिलकर आता हूं। #morya

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