shabd-logo

विचार

22 अक्टूबर 2015

108 बार देखा गया 108

एक बार मैं अपने बाबा जी के अंतिम संस्कार की क्रिया मे गंगा किनारे था । ठीक उसी समय एक परिवार मे एक बालक का मुंडन संस्कार हो रहा था । मैंने अपने


पिता से बोला देखिये एक  जिंदगी की  इस दुनिया से बिदाइ , और एक नई जिंदगी की शुरुआत ।

क्या हर दिन ऐसा ही होता है ............!!!!!!!!!





मिथिलेश कुमार ठाकुर की अन्य किताबें

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

बिलकुल ठीक कहा विजय जी, जीवन-चक्र यूं ही चलता रहता है, बस रूप बदलते रहते हैं । उत्तम विचार !

22 अक्टूबर 2015

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए