कवि द्विविधा
कलम शोर मचाती नहींशब्द गुनगुनाते नहींकिताबें पड़ी हैं मगर,किसी से पढ़ी जाती नहीं।लेखक हो मशहूरखर्चा पाते नहींलिखावट से इबादत कीमहक अब आती नहीं।कलम दुनिया बदल देंऐसा अब होता नहींप्रेमचंद लिए नए जूतेइसीलिए रोता नहीं।' सत्य ' स्वयं गुरूर मेंकलम चुभोता नहींअंतः कविता पेश हैकवि का भरोसा नहीं।