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भारतीय मनीषियों ने मनुष्य के एकादश इंद्रियों में सबसे शक्तिशाली मन को माना है।और जो व्यक्ति मन पे विजय प्राप्त कर लेता है वह सर्वस्व जगत पर विजय प्राप्त कर लेता है।इसी मन को आधार बनाकर वेदांत दर्शन *- मनुष्य के शरीर को नाव, मन को शरीर रूपी नाव का नाविक तथा संपूर्ण संसार को सागर मानते हुए।यह स्पस्ट करता है कि अब मन रूपी नाविक पर निर्भर करता है कि वह संसार रूपी सागर में मन रूपी नाविक के माध्यम से शरीर रूपी नाव को किस किनारे पर ले जाता है*
आज हमारे देश के बहुतायत युवा,अपने सांस्कृतिक विरासत और शास्वत दर्शन को कोशो दूर पीछे छोड़ कर,अनैतिक आचरणों को आत्मसात कर मात्र पञ्च कर्मेन्द्रियों तथा पञ्च ज्ञानेन्द्रियो के पिपासा को शांत करने के उद्देश्य मात्र से,अपनी राष्ट्रीयता ही नही अपितु,अपनी समस्त पुरातन परम्पराओ,आदर्शो तथा बसुधैव कुटुम्बकम के भावना से निहित मानवता को कलंकित कर रहे हैं।
सांस्कृतिक विरासत,धर्म दर्शन,तथा आस्था विश्वास को कूट-कूट कर आत्मसात करने वाली भारतीय जनमानस,अपने मन के माध्यम से इंद्रियों पर नियंत्रण कर भक्ति और ज्ञान पिपासा को पूर्ण करने की अभिलाषा से,जिन धर्माचार्यो के शरण में जाते हैं,वे धर्माचार्य अपने ही इंद्रियों पर नियंत्रण नही रख पाते और भारतीय जनमानस के आस्था विश्वास को तार-तार करते हुए,हमारे सांस्कृतिक विरासत को धराशाही कर देते हैं।और हम मूक दर्शक बनकर देखने के शिवा कुछ नही कर पाते क्यों?जैसे राम रहीम,आशा राम इत्यादि धर्माचार्य गण।
आज कमोवेश यही स्थिति हमारे भारतीय राजनीति में भी देखने मिलती है।भारतीय जनता अपने इंद्रियों पर नियंत्रण कर अपनी आवश्यक्ताओ को सिमित कर,अपने कल्याण के निमित्त राजनेताओ को चयन कर,उनके ऊपर आशा विश्वास कर के अपने कल्याण के निमित्त आस्था लगा बैठती है,लेकिन बहुतेरे नेता गण अपने स्व के इंद्रियों के पिपासा को शांत करने में ही रह जाते हैं, और जनता-जनार्दन के आशा विश्वास का गला घोंट,मानवता को कलंकित कर वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को तार-तार करने में भी नही चुकते, और यह भारतीय जनता मूक दर्शक बनकर,लाचार,वेवश,पिजड़े में बंद पंछी के तरह पाँचवे वर्ष का इंतजार करती रहती हैं।
जबकि हमारा धर्म दर्शन,हमारी विशाल संस्कृति,हमारी पुरातन परम्पराये,सकल कल्याण की विचार धारा से ओत-प्रोत भारतीय धरा सदैव मन पर विजय प्राप्त करने वालो को ही राजयोग दी है,परतु आज कलयुगी विचारधारा में संलिप्त जन ही राज योग को प्राप्त कर रहें हैं।अतःइस देश को बचाने हेतु मनोयोग से राजयोग की प्रत्याशा करने वाले को ही राजनेता व् धर्माचार्य मानना भारतीय संस्कृति और राष्ट्र रक्षा के लिए श्रेयस्कर होगा।
*डॉ.अजय कुमार मिश्र*
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*संयुक्त-मंत्री,suacta*