*!!मौत पर निकली आह!!*
कोई आह भरे,कोई दाह करे।
कोई रो-रो के रोज विहान करे
कोई दोषी माने ईश्वर को ।
कोई भाग्यहीन होना माने।
सबके आंशू में एक दंश ।
हे देने वाले क्यों तु दिया ।
लेना ही था गर प्राण तुम्हे।
मेरे प्राणों को ले लेता ।
हे वायु की दाता सरकारें ।
प्राणों की दाता सरकारें ।
यदि प्राण से बढाकर पैसा है।
तो लो मैं लाखो रूपया देता हूं
पर प्राण मुझे वापस दे दो।
मैं तुमसे विनती करता हूँ ।
मेरे बच्चो को जिन्दा कर दो।
तन धन मैं अर्पित करता हूँ ।
हे वसुधा के स्रष्टा गण,
मेरे ऊपर उपकार करो।
मेरे बच्चो के प्राणों में ,
शांति का अब संचार करो ।
मैं चूक गया आशा कर के,
प्राणो के रक्षक वैदो पर ।
मैं चूक गया विश्वास पथिक,
नेताओ के झूठेपन पर ।
हे प्राण हीन बालक मेरे, प्राणो से विनती करता हूँ।
गर आज मुझे मालूम होता,
सब छल प्रपंच में पैसा है ।
प्राणो का रक्षक पैसा है ।
प्राणो की कीमत पैसा है ।
तो जन्म नही तुमको देता,
जीवन भर घुट-घुट जीता ।
हर गांव गली चौराहों पर ,
बस एक बात सबसे कहता।
हे दीन हीन दम्पति प्राणी,
बच्चो को जन्म न देना तुम।
गर जन्म दिए बच्चो को तुम,
जीवन भर अश्रु बहाओगे।
रोगों का औषाधि दूर यहॉ
आक्सीजन बिन मर जाओगे।
अपने ही बच्चो के लाशो पर,
तुम राजनीति करवाओगे ।
*शोक संतप्त*
*डॉ.अजय कुमार मिश्र*
*स्वरचित कविता*