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मौत पर निकली आह !

30 सितम्बर 2017

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*!!मौत पर निकली आह!!* कोई आह भरे,कोई दाह करे। कोई रो-रो के रोज विहान करे कोई दोषी माने ईश्वर को । कोई भाग्यहीन होना माने। सबके आंशू में एक दंश । हे देने वाले क्यों तु दिया । लेना ही था गर प्राण तुम्हे। मेरे प्राणों को ले लेता । हे वायु की दाता सरकारें । प्राणों की दाता सरकारें । यदि प्राण से बढाकर पैसा है। तो लो मैं लाखो रूपया देता हूं पर प्राण मुझे वापस दे दो। मैं तुमसे विनती करता हूँ । मेरे बच्चो को जिन्दा कर दो। तन धन मैं अर्पित करता हूँ । हे वसुधा के स्रष्टा गण, मेरे ऊपर उपकार करो। मेरे बच्चो के प्राणों में , शांति का अब संचार करो । मैं चूक गया आशा कर के, प्राणो के रक्षक वैदो पर । मैं चूक गया विश्वास पथिक, नेताओ के झूठेपन पर । हे प्राण हीन बालक मेरे, प्राणो से विनती करता हूँ। गर आज मुझे मालूम होता, सब छल प्रपंच में पैसा है । प्राणो का रक्षक पैसा है । प्राणो की कीमत पैसा है । तो जन्म नही तुमको देता, जीवन भर घुट-घुट जीता । हर गांव गली चौराहों पर , बस एक बात सबसे कहता। हे दीन हीन दम्पति प्राणी, बच्चो को जन्म न देना तुम। गर जन्म दिए बच्चो को तुम, जीवन भर अश्रु बहाओगे। रोगों का औषाधि दूर यहॉ आक्सीजन बिन मर जाओगे। अपने ही बच्चो के लाशो पर, तुम राजनीति करवाओगे । *शोक संतप्त* *डॉ.अजय कुमार मिश्र* *स्वरचित कविता*

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मौत पर निकली आह !

30 सितम्बर 2017
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*!!मौत पर निकली आह!!*कोई आह भरे,कोई दाह करे।कोई रो-रो के रोज विहान करे कोई दोषी माने ईश्वर को ।कोई भाग्यहीन होना माने।सबके आंशू में एक दंश ।हे देने वाले क्यों तु दिया ।लेना ही था गर प्राण तुम्हे।मेरे प्राणों को ले लेता ।हे वायु की दाता सरकारें ।प्राणों की दाता सरकारें ।यदि प्राण से बढाकर पैसा है।तो

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मनोयोग से राजयोग

1 अक्टूबर 2017
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------------------------------------ भारतीय मनीषियों ने मनुष्य के एकादश इंद्रियों में सबसे शक्तिशाली मन को माना है।और जो व्यक्ति मन पे विजय प्राप्त कर लेता है वह सर्वस्व जगत पर विजय प्राप्त कर लेता है।इसी मन को आधार बनाकर वेदांत दर्शन *- मनुष्य के शरीर को नाव, मन को शरीर रूपी नाव का नाविक तथा संपू

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