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ओ मेरे महबूब तेरा शुक्रिया

21 मार्च 2018

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featured imageमहबूब तेरा शुक्रिया है ये दर्द ओ गम जो तूने मुझे दिया है, ओ मेरे महबूब तेरा शुक्रिया है। कसमों का पता नहीं, मगर वादों को तूने भूला दिया है।। तेरी इस मोहब्बत का अजब किस्सा, दिन गुमनाम हुआ रातों को जला दिया है। गुमनाम हो, मगर, तुम ख़यालों में समाए, ओ नादान बिछड़ कर ये कैसा सिला दिया है।। ओ महबूब तेरा शुक्रिया.....

Arun Suyash की अन्य किताबें

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मेरे महबूब तेरा शुक्रिया.....

21 मार्च 2018
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महबूब संग अद्भुत पलों की अनोखी झलक दिल से निकली ।

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ओ मेरे महबूब तेरा शुक्रिया

21 मार्च 2018
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महबूब तेरा शुक्रिया हैये दर्द ओ गम जो तूने मुझे दिया है,ओ मेरे महबूब तेरा शुक्रिया है।कसमों का पता नहीं,मगर वादों को तूने भूला दिया है।।तेरी इस मोहब्बत का अजब किस्सा,दिन गुमनाम हुआ रातों को जला दिया है।गुमनाम हो, मगर, तुम ख़यालों में समाए,ओ नादान बिछड़ कर ये कैसा सिला दिया है।।ओ महबूब तेरा शुक्रिया...

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दीदार-ए-मोहब्बत

23 मार्च 2018
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हुई भोर तो नज़ारे चहक उठे,उपवन में सुमन महक उठे।उठी हुक जो तेरे इश्क की इस दिल में,तेरे दीदार को नयन मेरे मचल उठे।।

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इश्क में पड़ गये

24 मार्च 2018
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वो मेरे मुकद्दर-ए-इश्क की कहानी गढ़ गए,अनकही न समझे मगर कही को ज़ुबानी पढ़ गए।नासमझ के इश्क की लत भी अजीब लगी है मुझे,हम डूबे हैं उनमें और वो किसी के इश्क में पड़ गए।।

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उस दिन

30 मार्च 2018
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सफ़र का शौक़ीन मैं, हैरान रह गया उस दिन, तेरी उस हसीन सी मुस्कराहट पर सफ़र ही भूल गया जिस दिन, उबरे जब तलक तेरे ख़याल से बहुत देर हो गयी उस दिन, तेरे दीदार के चक्कर में कॉलेज देर से थे हम पहुंचे जिस दिन, क्या करें क्या बनायें बहाना, थी अजीब कश्मकश उस दिन, न ही ठण्ड थी न था मौसम ठंड का फिर भी कंपकंपी छाय

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सफ़र

30 मार्च 2018
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सफ़र का शौक़ीन मैं, हैरान रह गया उस दिन, तेरी उस हसीन सी मुस्कराहट पर सफ़र ही भूल गया जिस दिन, न ही ठण्ड थी न था मौसम ठंड का फिर भी कंपकंपी छायी थी उस दिन, आँखों में मस्ती चेहरे पर मुस्कुराहट बिखेर तुमने सितम ढ़ाया जिस दिन, मिली थीं फ़िर से नजरें और तू शरमा कर मुस्करायी थी उस दिन, साँसे बिखर गईं कमबख़्त

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https://www.facebook.com/groups/arun.21/permalink/816423525220307/

4 अप्रैल 2018
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कह न सके जो लफ्ज़ हम उनसे ज़ुबाँ से उन लफ़्ज़ों को काग़ज पर उकेर डाला है...तब जाकर आया सुकूँ जब लफ़्ज़ों को इत्मिनान-ए-समन्दर में भिगो डाला है...

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इक ख्वाहिश अधूरी है जाने कब होगी पूरी, खोएंगे हम दोनों इक-दूजे में मिट जाएगी ये दूरी।। जीवन का आनंद बहुत उठाना है या फिर जीना है या मर जाना है, कुछ याद नहीं कुछ फ़रियाद नहीं कुछ सुनना है या कुछ कह जाना है।। बिखरे लम्हों को जो समेट सके ऐसा कोई लम्हा मिल जाए, अपनों को अपनों से मिला सके ऐसा कोई अपना मिल जाए।।

21 जून 2018
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कुछ नहीं

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पानी ने लौटाई खुशहाली

27 जून 2018
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पानी ने लौटाई खुशहालीSubmitted by RuralWater on Thu, 05/03/2018 - 18:57लेखकमनीष वैद्य बालौदा लक्खा गाँव को अब जलतीर्थ कहा जाता है। इस साल इलाके में बहुत कम बारिश हुई है। 45 डिग्री पारे के साथ चिलचिलाती धूप में भी गाँव के करीब 90 फीसदी खेतों में हरियाली देखकर मन को सुकून मिलता है। पर्याप्त पानी होने

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