महज सात महीने पहले गुजरात के सूरत शहर में तक्षशिला कोचिंग सेन्टर में खोई सत्तरह जिंदगियों का ग़म देश भुला ही नहीं था कि दिल्ली के सदर बाजार इलाके में रविवार को सुबह लेडीज पर्स, बैग और प्लास्टिक आइटम बनाने की चार मंजिला फैक्टरी में भीषण आग लग गई। हादसे में 43 लोगों की मौत हो गई तथा 17 लोग बुरी तरह झुलस गये। रानी झांसी रोड स्थित अनाज मंडी के पास करीब 600 गज के प्लाट में तीन कारखानों का संचालन हो रहा था।
दूसरी मंजिल से लगी आग ने देखते ही देखते विकराल रूप धारण कर लिया। बताया जा रहा है कि फैक्टरी में ऊपर जाने का एक ही रास्ता था जिसे बाहर से बंद किया हुआ था। इसके अलावा ऊपर जाने का रास्ता भी बंद था। आग लगते समय तकरीबन सौ अन्दर फंस गये थे। कुछ लोग तो किसी तरह बाहर निकलने में कामयाब हो गए।
खबरों के मुताबिक बताया जा रहा है कि मरने वालों में कई नाबालिग भी शामिल हैं। ज्यादातर मौत धुंए में दम घुटने की वजह से हुई। शुरुआती जांच के बाद आशंका व्यक्त की जा रही है कि आग शार्ट सर्किट के कारण लगी।
1997 के उपहार कांड के बाद यह सबसे बड़ी घटना है जिसमें अधिक लोगों की मौत हुई है। देश के बड़े शहरों में आये दिन आगजनी की घटनाओं में अधिकतर मरने वाले गरीब मजदूर होते हैं। इस तरह की घटनाओं के लिए कौन जिम्मेदार है? इंसानों की जिंदगी इतनी सस्ती कैसे हो गई कि सरकार एक लाख के मुआवजे से तौल रही हैं?यह आग लापरवाह सिस्टम की है। बड़े शहरों की घनी आबादी के बीच बहुमंजिला इमारतों में कारखानों का संचालन अवैध रूप से किया जाता है।
हाल ही में दिल्ली सरकार के औद्योगिक व आधारभूत ढांचा विकास निगम (डीएसआईआईडीसी) की ओर से तीनों निगमों को करीबन 51 हजार कारखानों की सूची सौंपी गई थी। तीनों नगर निगमों ने इन सभी कारखानों का सर्वे कर इनमें से 25 हजार को अवैध पाया। सबसे ज्यादा 10 हजार 23 कारखाने दक्षिणी नगर निगम क्षेत्र में चल रहे हैं।
विश्वास नगर, गांधी नगर, मंगोलपुरी, शिवविहार, करोल बाग, रोहिणी, कीर्ति नगर इंदरपुरी जैसे क्षेत्रों में इनकी तादाद सबसे ज्यादा है।
इन कारखानों के मालिक मुनाफा कमाने के चक्कर में बिना किसी चाक-चौबंद के अधिकतम उत्पादन की दौड़ में रहते हैं। फैक्ट्रियों में आग से बचाव के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले किसी भी तरह के उपकरण भी नहीं लगाते हैं।
साथ ही अन्य प्रकार के सूरक्षा संबंधित कोई प्रबंध नहीं किए जाते हैं।
अन्दर काम करने वाले लोगों की सुरक्षा की कोई चिंता किए बिना केवल इन्हे मशीनों की तरह इस्तेमाल करते हैं। यह लापरवाही दिल्ली में नहीं अन्य शहरों में भी है लेकिन इनकी पोल हादसे के बाद ही खुलती हैं। बड़े शहरों में ऊंची इमारतों की इजाज़त देने के साथ-साथ इनमें आंखें मूंद कर ऐसे कारखानों की अनुमति दी जाती है जिनके पास आपात घटनाओं से निपटने के लिए कोई इंतजाम नहीं है। परिणामस्वरूप ऐसे दिल दहलाने वाले हादसे होते हैं जिसमें गरीब परिवार के लोगों की मौत होती है फिर उन्हें मुआवजे की आड़ में भूला दिया जाता है लेकिन हालात ज्यों के त्यों ही रहते हैं। बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से गरीब लोग अपने परिवार की तंगहाली दूर करने के सपने संजोकर यहां मेहनत करते है लेकिन उन्हें इस सिस्टम से मौत ही मुकम्मल होती है। सरकार चाहे तो ऐसे हादसे रोक सकती है। कारखानों को मान्यता देने से पहले इमारत की अवस्थिति,रास्ते,और सुरक्षा संबंधी सम्पूर्ण जांच करनी चाहिए। बड़े शहरों में संचालित हो रहे कारखानों, होटलों,निजि विद्यालयों, अस्पतालों आदि सरकार की नजर में हो, वहां सूरक्षा संबंधित खामियों की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिए। अधिकतर आगजनी शार्ट सर्किट से होती है तो क्यों नही विद्युत विभाग को तारों के खुले जंजाल को दुरुस्त किया जाना चाहिए। हर प्रकार घटना का कारण मानवीय लापरवाही जिम्मेदार होती है। अभी भी वक्त है ऐसी घटनाओं से सबक लेकर सिस्टम को सुधारा जाए। वरना ना जाने भविष्य में कौनसी इमारत लाक्षा गृह बन कर किसी परिवार के चिराग बुझा दें।
_____________________________________
लेखक परिचय
रमेश जोगचन्द