shabd-logo

कृषि प्रधान देश में किसान

16 नवम्बर 2019

624 बार देखा गया 624
featured imageभारत कृषि-प्रधान देश है। साथ ही दुनिया की सम्पूर्ण आबादी के लिहाज से दूसरे पायदान पर है। देश की विशाल जनसंख्या को खाद्यान्न उपलब्ध करवाने में किसान पिछड़ने लगा है। यह किसान कृषि-कार्य करके अपना ही नहीं, अपने देश का भी भरण-पोषण करते है। गांवों में अधिकांश किसान ही बसते हैं। यही भारत का अन्नदाता है। यदि भारत को उन्नतिशील और सबल राष्ट्र बनाना है तो पहले किसानों को समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाना होगा। किसानें की उपेक्षा करके तथा उन्हें दीनावस्था में रखकर भारत को कभी समृद्ध और ऐश्वर्यशाली नहीं बनाया जा सकता। आज के समय में कृषि योग्य भूमि की लगातार कमी होना तथा किसानों का कृषि के प्रति रुझान कम होना चिंता का विषय है। देश में बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण से कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण हो रहा है । भारत जैसे विशाल भू-भाग वाले राष्ट्र में अब भी कृषि योग्य भूमि की कमी नहीं हैं अगर इसका वैज्ञानिक और तकनीकी तौर पर प्रयुक्त किया जाए। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती हैं कि किसानों का कृषि कार्य में लगातार गिरावट आना । किसान अन्य व्यवसाय का चुनाव करके शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं । दिल्ली, मुम्बई आदि बड़े शहरों में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। इन बड़े शहरों को एक दिन में कितनी मात्रा में खाद्यान्न की आवश्यकता है? हम कल्पना कर सकते हैं। इसी तरह शहरों में आबादी बढ़ती जाएगी तो उनके लिए भोजन की आपूर्ति का संकट उत्पन्न हो जाएगा। गांवों में लोग खेती करते तो हैं, लेकिन खाद्य उत्पादन सिर्फ उनके स्वयं लिए पर्याप्त होता है। ऐसे में देश की सम्पूर्ण आबादी में खाद्यान्न उपभोक्ताओं की तुलना में उत्पादकों की संख्या बहुत कम है। खाद्य संकट का यह सबसे बड़ा कारण है। इसका सबसे बड़ा कारण किसानों में असंतोष और उनकी दयनीय स्थिति है। यह बहुत दुख की बात है लेकिन यह सच है कि भारत में किसानों की आत्महत्या के मामलों में पिछले कुछ वर्षों में वृद्धि हुई है। इन आत्महत्याओं के पीछे कई कारण हैं जिनमे प्रमुख है अनियमित मौसम की स्थिति, ऋण बोझ, परिवार के मुद्दों तथा समय-समय पर सरकारी नीतियों में बदलाव। आजादी के बाद किसानों के सामने उन्नत तकनीक और संसाधनों की कमी थी। आज संसाधनों की उपलब्धता होते हुए भी खाद्यान्न उत्पादन और इनकी गुणवत्ता का खतरा मंडरा रहा है। आज हमारे सामने खाद्यान्न संकट गहरा रहा है, इस संकट से उबरने के लिए हमारी ढाल सिर्फ किसान ही है और किसानों की ही स्थति को अनदेखा करते रहेंगे तो इससे बड़ी कोई भूल नहीं होगी। स्वतंत्र भारत से पूर्व और स्वतंत्र भारत के पश्चात् एक लम्बी अवधि बीतने के बाद भी भारतीय किसानों की दशा में कोई सुधार दिखाई नहीं देता है। जिन अच्छे किसानों की बात की जाती है, उनकी गिनती उंगलियों पर की जा सकती है। बढ़ती आबादी, औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण कृषि योग्य क्षेत्रफल में निरंतर गिरावट आई है। कृषि प्रधान राष्ट्र भारत में लगभग सभी राजनीतिक दलों का कृषि के विकास और किसान के कल्याण के प्रति नरम रवैया ही रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किसानों को भारत की आत्मा कहा था। बावजूद इसके किसानों की समस्याओं पर ओछी राजनीति करने वाले ज्यादा और उनकी समस्याओं की तरफ ध्यान देने वाले कम हैं। चुनावी दौर में विभिन्न राजनीतिक दलों की जुबान से किसानों के लिए हितकारी बातें अन्य मुद्दों के समक्ष निम्न हो जाती हैं। जिस तरह से तमाम राजनीतिक दलों से लेकर मीडिया मंचों पर किसानों की दुर्दशा की बातें होती है, उसमें समाधान की शायद ही कोई चर्चा होती है। इससे यही लगता है कि यह समस्या वर्तमान समय में सबसे अधिक छोटा विषय बनकर रह गयी है। भारत में प्रतिवर्ष कई किसानों की मौत का कारण फसल संबंधित बैंकों का कर्ज न चुकता कर पाने के दबाव में आत्महत्या करना है। यही नहीं, हमारे देश के लाखों किसान बढ़ती महंगाई को लेकर भी परेशान हैं, क्योंकि इसका सीधा नुकसान किसानों की स्थिति पर पड़ता है। आज किसानों को सबसे बडी मार संसाधनों की मंहगाई से पड़ती है। डीजल, पेट्रोल आदि ईंधन की दरों में बढ़ोतरी तथा कृषि उपकरणों के आसमान छूते मुल्य किसानों में निराशा उत्पन्न कर रहे हैं। हरित क्रांति के बाद कृषि उत्पादन में वृद्धि तो हासिल की लेकिन रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल में भी अवांछित बढ़ोतरी हुई है। इस तरीके से येन-केन प्रकारेण खाद्यान्न तो उपलब्ध हों जाएगा लेकिन स्वास्थ्य से समझौता करना पड़ेगा। इसलिए अनाज,फल आदि खाद्य उत्पादों को प्राकृतिक रूप से उत्पादन करना होगा।जिसके लिए किसानों की संख्या में बढ़ोतरी और उनके हौंसले बुलंद करने होंगे। शहरीकरण को धीमा करके कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल में वृद्धि करनी होगी। गौरतलब है कि भूमि का बड़ा हिस्सा बाढ़, औद्योगिक क्षेत्र के प्रदुषित जल , गंदगी आदि से प्रभावित होकर बंजर रह जाता है। सीमांत किसानों और गांव के छोटे-बड़े कृषकों के पास उपजाऊ जमीन का क्षेत्रफल निरंतर कम होता जा रहा है। विभिन्न सरकारों उत्पादन बढ़ाने की कोशिश की और उन्हें सफलता भी मिली लेकिन कम क्षेत्र में अधिक उत्पादन सिर्फ रासायनिक जहर से किया जाने लगा है। जो कैंसर जैसी बिमारियों को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। इस तरह की खाद्यान्न आपुर्ति हमें मजबूरन स्वीकार करनी पड़ती है। हमें हमारे अन्नदाताओं को जहर बौने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए। किसानों के लिए क्या करना चाहिए यह सब हम हर अखबार या अन्य लेखों में पढ़ते हैं, मिडिया से सूनते हैं, देखते हैं। किसानों के हित के लिए कार्यों को इस लेख में गिनाना नहीं चाहूंगा। खाद्य संकट की विकराल समस्या से निजात पाने के लिए हमारे पास एक मात्र विकल्प है कि हमारे देश में किसानों की संख्या में कमी नहीं हो, किसानों में असंतोष व्याप्त नहीं हो। आज किसान दिन-रात मेहनत करता हैं लेकिन साल के अंत में उसकी आमदनी और बचत किसी कारखाने में आठ घंटे काम करने वाले एक मजदूर से कम होती है। यहां से हमारे किसान का हौसला टूट जाता है। यहां तक कि कुछ सीमांत किसान अपने परिवार का भरण-पोषण करने में अक्षम हो जाते हैं। किसानों की स्थिति में सुधार की जरूरत कहां और किस तरह से है इस बात को केवल दो लाइनों में व्यक्त करना चाहूंगा। हमारे अन्नदाता को ऐसी परिस्थितियों की जरूरत हैं जिससे वह बिना बोझ के आत्मविश्वास,लगन,उत्साह से खेती करें। उनकी तमाम बाधाओं को भले ही परिवार की आर्थिक स्थिति की समस्या हो या कर्ज हो , फसल बर्बाद का नुक़सान हो आदि के लिए सरकार को उसके साथ खड़ा होकर उसे मानसिक, शारिरिक, सामाजिक, आर्थिक रूप से मजबूत करना होगा। _____________________________________ लेखक परिचय रमेश कुमार जोगचन्द जिला- बाड़मेर शिक्षक , रचनाकार,लेखक स्तंभ-कलम की आवाज़ समसामयिक विषयों पर निरंतर लेखन Email- jogachandramesh707@gmail.com Mob 6378207787
1

अयोध्या विवाद के फैसले का जनतांत्रिक परिप्रेक्ष्य

22 अक्टूबर 2019
0
1
0

__________________________________अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई खत्म हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने बरसों से चले आ रहे इस मामले की सुनवाई 40 दिनों में पूरी की है। इस मामले में गठित मध्यस्थता पैनल ने बुधवार को सुनवाई खत्म होने के बाद सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम

2

पटेल की राह चलें भारत

31 अक्टूबर 2019
0
0
0

आज भारतवर्ष सरदार पटेल की 144 वीं जयंती मना रहा है।भारत को राष्ट्रीय एकता सूत्र में बाधने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल को लौह पुरुष भी कहा जाता है उन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाई और भारत के आजाद होने पर भारत देश के प्रथम गृहमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया और अपने साहस भरे निर

3

मेरी परछाई

13 नवम्बर 2019
0
1
0

मेरी परछाई हरदम साथ चली।हर गांव शहर गली गली ।जो थे मेरे कर्म या थी कोई डगरमिलकर गले पल-पल साथ चलीं।मैं झुका संग झुकी मैं गिरा वह भी गिरकरहर इरादे में साथ चली।मेरी परछाई..............तन्हा सफर हो या रोशन रातेंसंग दूर तलक चली।सत्य की राह हो या हो मिथ्य पथ।बेबस बे जुबां चली।मेरी परछाई ..…............क

4

कृषि प्रधान देश में किसान

16 नवम्बर 2019
0
0
0

भारत कृषि-प्रधान देश है। साथ ही दुनिया की सम्पूर्ण आबादी के लिहाज से दूसरे पायदान पर है। देश की विशाल जनसंख्या को खाद्यान्न उपलब्ध करवाने में किसान पिछड़ने लगा है।यह किसान कृषि-कार्य करके अपना ही नहीं, अपने देश का भी भरण-पोषण करते है। गांवों में अधिकांश किसान ही बसते हैं। यही भारत का अन्नदाता है। यद

5

लापरवाही के लाक्षागृह में बूझ गये चिराग

18 दिसम्बर 2019
0
0
0

महज सात महीने पहले गुजरात के सूरत शहर में तक्षशिला कोचिंग सेन्टर में खोई सत्तरह जिंदगियों का ग़म देश भुला ही नहीं था कि दिल्ली के सदर बाजार इलाके में रविवार को सुबह लेडीज पर्स, बैग और प्लास्टिक आइटम बनाने की चार मंजिला फैक्टरी में भीषण आग लग गई। हादसे में 43 लोगों की मौत हो गई तथा 17 लोग बुरी तरह झु

6

आतंकवाद के साये में कमजोर होता दक्षेस

24 दिसम्बर 2019
0
0
0

शबांग्लादेश के तात्कालिक राष्ट्रपति जियाउर रहमान द्वारा 1970 के दशक में एक व्यापार गुट सृजन हेतु किए गए प्रयासों के परिणामस्वरूप दिसम्बर 1985 में दक्षिण एशियाई देशों के उद्धार के लिए दक्षेस जैसे संगठन को विश्व पटल पर लाया गया। यह संगठन सार्क या दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) नाम से जान

7

सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना

26 दिसम्बर 2019
0
1
0

आज सदी की सबसे खूबसूरत खगोलीय घटना।सूर्यग्रहण।अगर आप अपने बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न करना चाहते हैं तो इस सौरमंडल में चन्द्रमा द्वारा सूर्य के प्रकाश को ढकने की घटना को दिखाएं समझाएं । डराए नहीं।भारत में पिछले हजार साल तक विभिन्न तर्क देकर अंधविश्वास और भ

8

ऐ मां इक तूं ही तो है।

10 मई 2020
0
0
0

ऐ मां इक तूं ही तो है।जो हर दम जीने की आस जगाती है।शैशव काल में वो हर जरूरतदूध हो या सूखा बिस्तर वो गर्मी की शुष्क रातों मेंडरावनी हवा के झोंको मेंफूल से कोमल शिशु कोमां तेरी लोरी ही तो चैन से सुलाती है।ऐ मां इक तूं ही तो है।जो हर दम जीने की आस जगाती हैं। नादान बचपन के दिनों आवारागर्दी और वो भ्

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए