व्यंग्य
दोहे तीरथ केलूले के शुभ ब्याह में , लंगड़ों की बारात।मण्डप में अंधी वधू , ससुर सार कुख्यात।।जाति केर न बात करो,फुनगी मिशिर प्रवीन।लड़का है बी ए पढ़ा, चलें केस संगीन।।धन में पूर्वज वर के, पुरान लम्बरदार।है घर अन्न आज नही, कर्जा में सत्कार।।विप्र दुःख तीरथ लिखें, रोषपूर्ण यह ताज। पास न इनक