20 नवम्बर 2017
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हवा के थपेड़े बस्ती उजाडेंगे जो खुद बिगड़े हैं हमें सुधारेंगे, जिनपे आज तक एक चिराग नहीं संभला वो अब पूरा आफ़ताब संभालेंगे । हम घूट नही ओक से पीते हैं, दो घूट पिलाक़े हमे बिगाड़ेंगे। हम रोटी नही गोली से पेट भरते हैं, देखते हैं हमको कैसे संभालेंगे? जब्त हो चुकी सारी दुनियावी ताकतें, अब अपनी जेबों
मैं खूबसूरत नहीं, मेरी आँखों में अब वो नजाकत नहीँ, नहीँ है वो मुस्कराहट और ना ही मेरा चेहरा अब आकषर्क है।क्योंकि अब मैं अपना चेहरा नहीं ढकती, मैं दिखाना चाहती हूं सबको देखो कोई मेरे ऊपर अपनी मानसिकता अपनी नाकामी उडे़ल गया है, उडे़ल गया है गंगाजल जो समझता है कि उसने नेक काम कर दिया।मगर मैं कहती हू
मेरी आंख लग गयी थी, मैं लगभग अचेतन अवस्था में लेटा हुआ वो दिनों को याद कर रहा था।उस दिन मैं काॅलेज जाने के लिये जल्दी निकला था कि शायद आज मैं उसका नाम पूंछ लुंगा।मैं काॅलेज जाके Library के पास उसका इंतजार करने लगा कुछ देर बाद वो आयी बस मैं उसे करवा चौथ के चाँद की तरह निहारता रहा और मुझे पता भी न चला
जब घूंट लहू का पी लो तुम,हर जख्मों को सी लो तुम,पश्चाताप तुम्हारा फिर से,प्रतिशोध की अग्नि जल जाये,कल बीता वो हरपल तुम्हारा,आने वाले पे टल जाये,है थोड़ी गैरत बाकी,तोथोड़ी सी खुद्दारी रखना,वो दुश्मन ताक में बैठा है,थोड़ी सी चिंगारी रखना।