मेरी आंख लग गयी थी, मैं लगभग अचेतन अवस्था में लेटा हुआ वो दिनों को याद कर रहा था।
उस दिन मैं काॅलेज जाने के लिये जल्दी निकला था कि शायद आज मैं उसका नाम पूंछ लुंगा।मैं काॅलेज जाके Library के पास उसका इंतजार करने लगा कुछ देर बाद वो आयी बस मैं उसे करवा चौथ के चाँद की तरह निहारता रहा और मुझे पता भी न चला कि वो कब निकल गयी और आज मैं फिर नाकाम शिकारी की भाँति वापस कमरे पे लौट आया।
उससे मेरी आँखों की मुलाकात सड़क पर पड़े सिक्के की तरह अचानक ही हुयी थी जिसे मैंने सबसे नजरें बचाकर अपने दिल की जेब में डाल लिया और खुश होता हुआ उसी नैन मुलाकात में खो गया।उस दिन से ना जाने कैसी ललक सी लग गयी थी उसके बारे में जानने की। मैं उसके मनोवैज्ञानिक नाम खोजता जा रहा था और बच्चे की शरारती मुस्कान मेरे होंठो पर छाती जा रही थी।
उसका चेहरा मेरे अंग अंग में अपनी जगह बनाता जा रहा था और मुझे उत्साहित किये जा रहा था।
मैं आज फिर हौसले का धनुष और मुहब्बत का तीर लिये मैदान में उतरने जा रहा था और संकल्प था कि आज जरूर विजयी होके लौटुंगा।
मैं इंतजार करने लगा और आज बिना मोह माया के अपना बाण तैयार किये था अचानक दिल दिमाग दोनो पे आहट हुयी कि कोई आया है देखा तो वो नजर आयी और मैंने बिना हिचकिचाहट के अपना तीर छोड़ दिया।
वो मेरी उससे पहली वार्ता थी.... जो मुझे अब ज्यादा ही याद आ रही थी।उसका मुस्कराना बस अच्छा लगता था, अच्छा लगता था उसका इंतजार करना और सबसे ज्यादा तलब उसका नाम पूछने की जो मुझे गुदगुदाती रहती थी, कैसा लगेगा जब वो नाम बतायेगी?
आज मेरे हाथ में वो कागज था जिसमें उसका नाम लिखा था जो उसने खुद दिया था और आज मैं फिर से उसे खोल रहा था। मैं मुस्करा रहा था और उसका नाम देख रहा था जिसमें लिखा था-
'आपकी अपनी प्यारी......। '
बस यही था जो अपना था।
आँखों की नजाकत, इंतजार उसका, उसकी बनावट, मेरी झलक।
बस यही था जो बाहरी दुनिया से परे मेरी रूह के रास्ते होता हुआ दिल के बगीचे में मुहब्बत के बीज बो चुका था और मैं करज में डूबे किसान की तरह फसल पकने का इंतजार कर रहा था।
धन्यवाद
ऋतिक मौर्य।