स्वतंत्र व निष्पक्ष "आवाज" को कुचला जा रहा है !
?अगरतुम लिखोगेहम देख लेंगे,ये समाज हमारी ही है,ऐसी आवाजें आती हैंमैंने लिखासाहित्य की किलिष्ट भाषा में उनको समझ नहीं आयासफलता हाथ लगी ।उनका समूह है,पूरे देश में सक्रिय है,वे लोकप्रिय हैं ।अखबारों में छाये रहते हैंसमाज में प्रतिष्ठा निरंक है।खोटे सिक्के के भांति चल भी जाते है !दरकार है,साहसिक पत्रकार