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कविता

22 अगस्त 2018

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हो तिरंगा उन हाथों में जिनमें है मायूसी। भारत माँ की जय बोलें लब जिनमें है खामोशी।। वन्दे मांवतन वन्दे मां वतन। कुंठित मन ले खड़ी है जनता सबल आसरा खोज रही है लोकतन्त्र की कोख से उपजे भ्रष्टतन्त्र को कोस रही है आओ हम तरकीबें सोचें करके कुछ जतन।।।।। । कहीं देश की सीमाओं पर प्रहरी बन जान गंवाते लाल कहीं देश के शुभचिंतक बन। माँ की कोख करें हलाल आओ हम तस्वीर बदल दें करके देश चमन। वन्दे मांवतन।। देश बना है उनके बल पर जिनके लाल हुए कुर्बान बलिदान वही सम्भालेंगे आगे भी जिन्हें देश पर है अभिमान भृष्ट वृत्ति पर लगा नियन्त्रण दुष्कृतियों का करें दमन।।। मीरा मंजरी 18/8/2018

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नफरतें जब बोयेंगे तो नफरते लहरायेगीं ।जब मुहब्बत बोयेंगे नफरते मिट जायेंगी ।।

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: घर की चाहरदीवारी से अलग स्वान्तःसुखाय यात्रा पर रेल गाड़ी में बैठ कर ,खिड़की के सहारे खेत खलिहानों को दौड़ते, पीछे छूटने देखना और खुद को आगे बढ़ते देखने से रोमांचक यदि कुछ हो सकता है तो जिन्दगी में वह अनुभूति भी अवश्य करनी चाहिए मगर पेड़, पौधों, खम्भों,आकाश, चाँद, सूरज और नदियों को दौड़ते भागते दे

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