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भोपाल यात्रा

22 अगस्त 2018

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: घर की चाहरदीवारी से अलग स्वान्तःसुखाय यात्रा पर रेल गाड़ी में बैठ कर ,खिड़की के सहारे खेत खलिहानों को दौड़ते, पीछे छूटने देखना और खुद को आगे बढ़ते देखने से रोमांचक यदि कुछ हो सकता है तो जिन्दगी में वह अनुभूति भी अवश्य करनी चाहिए मगर पेड़, पौधों, खम्भों,आकाश, चाँद, सूरज और नदियों को दौड़ते भागते देखने का लुत्फ भी अवश्य लेना चाहिए ।यात्रा यदि सौदेश्य साहित्य सृजन और रचनाकार सम्मिलन के उद्देश्य से करनी है तो उसमें अपने देश के आत्मीयजन को जानने, समझने और वैचारिक आदान -प्रदान का सौभाग्य भी जुड़ जाता है ।     आइए चलते हैं मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल जिसे झीलों की नगरी भी कहा जाता है ।23मार्च 2018 को विश्व मैत्री मंच के सौजन्य से मुझे भी अपने छः मित्रगण के साथ साहित्यिक यात्रा पर जाने का सुअवसर मिला।(हिन्दी भवन भोपाल में यह कार्यक्रम आयोजित हुआ ) ।जहाँ मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक और साहित्यकार श्री कैलाश चन्द्र पंत सहित अनेक गणमान्य अतिथि, पत्रकार और सम्पादकों के विचार जानने को मिले । मुझे एवं अन्य रचनाकारों को अपनी रचना प्रस्तुति का सौभाग्य भी मिला।       अपने देश को जानने  के लिए भोपाल का नजारा भी देखा ।भोपाल जिसके तालाब इतने बड़े हैं कि नदी का अहसास कराते हैं, जिसमें पतवार  की नाव और मोटर वोट दौनों से पानी पर सैलानी सैर करते हैं ।बड़ा तालाब कहलाने वाली मानव निर्मित झील, एशिया की सबसे बड़ी  झीलों में से एक है ।इसका निर्माण 11वीं सदी में परमार वंश के राजा भोज ने करवाया था ।बड़े तालाब के बीच तकिया द्वीप भी है।हर साल यहाँ पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियाँ सैलानी बन कर उतरती हैं ।पहाड़ियों  और बड़ी झील के बीच स्थित छोटी झील भी अपनी अनोखी सुंदरता से लोगों का मन हर लेती है।इन्हीं तालाब के बीच राजाभोज की बड़ी मूर्ती भी मनमोहक है।       शामलाहिल्स की पहाड़ियों पर लगभग दो सौ एकड़ विस्तृत प्रसिद्ध इंदिरा गाँधी संग्रहालय में देश के विभिन्न राज्यों की जनजाति संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।यह भारत ही नहीं अपितु एशिया में मानव जीवन को लेकर प्रदर्शित सबसे बड़ा संग्रहालय है।इसे प्रागेतिहासिक काल से सम्बन्धित माना जाता है ।       भोपाल से लगभग पचास किलोमीटर दूर सांची पर्यटन स्थल है ।यहाँ स्थित बौद्ध स्मारक तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से बारहवीं के बीच निर्मित माने जाते हैं ।सांची के स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए करवाया था  ।ऊँची पहाड़ी पर स्थित स्तूप के चारों ओर परिक्रमा पथ है ।यहाँ मौजूद तीनों स्तूपों को 1989 में यूनेस्को ने विश्व विरासत सूची में शामिल किया था ।        पड़ोसी जिले रायसेन में स्थित भीम बेटिका शैल चित्रों के लिए प्रसिद्ध है ।जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इन्हें विश्व धरोहर घोषित किया था।चट्टानों में बनी चित्रकारी को भारत. सरकार के द्वारा विशेष संरक्षण दिया है, फिर भी समय की मार से  बहुत से चित्र धूमिल होने लगे हैं ।सैलानी विशाल चट्टानों के बीच से गुजरते हुए गुजरा जमाना याद करते हैं और यहाँ रहने वाली जनजातियों में  अपने पूर्वजों का प्रतिबिम्व ढूँढने नजर आते हैं ।हमारी आज की सुविधा सम्पन्न जीवन शैली चट्टान जैसी कठोर यात्रा के दौर से गुज़र चुकी है, इसका अनुभव इन पहाड़ियों का भ्रमण करते हुए होता है ।ऐतिहासिक काल के चित्र जिनमें कुछ गेरुए रंग के हैं और कुछ सफेद रंग के।इन रेखा चित्रों में पैदल सेनिकों को हाथ में बड़ी तथा सीधी तलवार व हाथ में ढाल के साथ प्रदर्शितकिया है ।शैलाश्रय में कुल 453 आकृतियाँ चित्रित हैं जिसमें 252 सोलह प्रजातियों के विभिन्न पशुओं की हैं ।यहाँ से प्राप्त बहुत मात्रा में पशु आकृतियों के कारण ही इसे जन्तु शैलाश्रय भी कहा जाता है ।पशु आकृतियों के अतिरिक्त विभिन्न क्रिया कलापों में लिप्त मानव आकृतियाँ एक चिड़िया, छः अलंकरण दो आयात ,शंख चित्रित हैं ।यहाँ मध्य पाषाण काल के कुछ चित्रों के अलावा अधिकांश चित्र ताम्राश्म काल तथा ऐतिहासिक  काल से सम्बन्धित हैं ।श्री वी. एस.वाकणकर (विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन )ने न 1957-58 में भीम बैठिका को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलायी। और इसके लिए उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया ।        यहीं करीब माता वैष्णवी मंदिर भी है और चट्टानों के मध्य स्वतः निर्मित गुफा जैसे घर भी ।आधुनिक गीत संगीत और दैनिक सामन की दुकानों से यहाँ का वातावरण मेले के दौरान वीराने में मंगल मय होने लगता है।        शिव मन्दिर भोजपुर का निर्माण भोजदेव प्रथम  (ईसवी 1010-1058)द्वारा किया गया था ।पश्चिमाभिमुख शिवालय एक विसूतृत जगती(32.26मीटर ×23.50मीटर ×5मीटर)पर निर्मित है ।गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग( 2.03मीटर )ऊँचा ,भारत में विशालतम हैं ।मन्दिर अपने स्थापत्य की बजह से दर्शनीय है और संरक्षित भी । शहीदों को समर्पित शौर्य स्मारक का लोकार्पण भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा श्री ओमप्रकाश कोहली, राज्यपाल मध्य प्रदेश, श्री मनोहर पर्रिकर ,रक्षा मन्त्री ,भारत सरकार एवं श्री शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश की गरिमामय उपस्थिति में दिनांक 14 अक्टूबर 2016को किया गया ।यहाँ वीर सैनानियों की वीरता की दास्तान फोटो गैलरी में दर्शायी गयी है।युद्ध के समय का वातावरण ध्वनि और प्रकाश के माध्यम से तथा सियाचिन की सर्द पहाड़ियों  का वातावरणा, जहाँ हमारे जवान सीमा पर तैनात हैं, जमी हुई बर्फ के कृत्रिम  वातावरण को बना कर प्रदर्शित हैं ।बहुत ऊँचे स्तम्भ पर शहीदों के सम्मान में ज्योति प्रज्वलित है ।सफेद गुलाबों की बहुत बड़ी -बड़ी क्यारियों की शोभा यहाँ देखते ही बनती है, खुले रंगमंच पर बहुत बड़ा स्क्रीन है जहाँ शौर्य गाथाओं का फिल्मांकन देख सकते हैं ।कुल मिलाकर कह सकते हैं कि इस स्थान पर आकर हर इंसान का सिर श्रद्धा  से झुक जाता है और आँखें नम हो उठती हैं ।      एशिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है भोपाल की ताज-उल-मस्जिद ।मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र की हुकूमत में शाहजहाँ बेगम ने इसे शुरू करवाया था लेकिन निर्माण  कार्य के बीच में हो उनकी मृत्यु हो जाने के कारण उनकी बेटी ने इसे पूरा करवाया ।मस्जिद में संगमरमर की गुम्बदों से सजी अठारह मंजिल ऊँची मीनारें हैं ।मस्जिद के नजदीक ही मोतिया तालाब की शान्त लहरें इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगाती हैं ।बहुत कुछ है यहाँ पर उसे देखने और समझने के  लिए वक्त चाहिए ।तीन दिन की यात्रा में बस इतना ही देखा जा सका और छुक छुक गाड़ी से अपने देश की मिट्टी, पर्वत, और नदियों की विशालता के दर्शन करके यह विश्वास होने लगा कि अभी हमारे पास मानवता का भरण पोषण करने के लिए बहुत कुछ है, पर समझदारी हमें दिखानी होगी ।मितव्ययिता और प्राप्त वस्तुओं के प्रति संवेदनशीलता की शिक्षा आने वाली पीढ़ी को देनी होगी और उदाहरण हम स्वयं बनेंगे ।ईश्वर महान हैं, उनकी सृष्टि में लघुता का नामोनिशान नहीं है ।        मीरा मंजरी 27/3/2018

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