सबसे पहले तो हम देश को गुलामी से आजाद कराने वाले क्रान्तिकारि-
स्वतन्त्रता आन्दोलन में कई संगठनो ने महत्वपूर्ण योगदान दिया उन्हीं में से एक अमर नाम 'आर्यसमाज' का भी रहा हैं | आर्यसमाज के प्रवर्तक *स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1885 मे अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश मे स्वदेशी राज्य का उदघोष करते हुए कहा...* "कोई कितना ही करे परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है | वह सर्वोपरि उत्तम होता है |" (निश्चित ही उन्हें इसकी प्रेरणा वेदों से मिली होगी।) बाल गंगाधर तिलक जी जिन्होंने नारा दिया था - 'स्वराज मेरी जन्म सिद्ध अधिकार है मै इसे लेकर रहुंगा।', स्वयं लिखते है *स्वराज्य की प्रेरणा उन्हें स्वामी दयानंद से ही मिली।* आगे हम *संक्षेप में* केवल उन लोगो का वर्णन करेगें जिनके भीतर छिपी क्रान्तिकारी भावना स्वामी दयानन्द और आर्यसमाज द्वारा वामन से विराट स्वरूप हुई | गांधी से पूर्व की *कांग्रेस के उत्तर भारत के ज्यादातर नेता आर्य समाज से प्रेरित थे।* इनमें स्वामी श्रद्धानंद मुख्य थे। बाद मे गांधी जी की नितियो इनमे से बहुत से नेता हिंदू महासभा मे शामिल हो गए। स्वामी जी ने स्वयं व उनके शिष्यों *स्वामी श्रध्दानन्द जी,महात्मा हंसराज जी,* स्वामी सत्यदेव जी, स्वामी सोमदेव जी, परमानन्द जी आदि ने बढ़ चढ़ कर क्रान्ति में भाग लिया था | तथा साथ ही सैकड़ो युवको को अपने ओजस्वी भाषणों से उन्हें अंग्रेजो के खिलाफ उठ खड़े होने को प्रेरित किया था | क्रान्तिकारी *भगत सिँह के दादा सरदार अर्जुन सिँह* और चाचा अजीत सिहँ स्वयं स्वामी दयानन्द जी के शिष्य थे | चाचा की प्रेरणा से ही भतीजा भगत सिहँ क्रान्तिकारी बना | *क्रान्तिकारियों के गुरू 'श्यामा जी कृष्ण वर्मा' को तो स्वयं महर्षि दयानन्द जी ने प्रेरित करके अंग्रेजों की राजधानी लंदन में जाकर क्रांन्ति फैलाने को भेजा था |* जहाँ जाकर उन्होनें गोरो की नाक में दम कर दिया था | महात्मा गाँधी जी को भी महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज प्रेरित गोखले जी, *महादेव गोविन्द रानाडे* तथा भाई परमानन्द जी ने आजादी के आन्दोलन के लिए ही प्रेरित किया था | *विनायक वीर सावरकर जी को श्यामा जी कृष्ण वर्मा ने प्रेरित किया था |* *रामप्रसाद बिस्मिल* तथा ठाकुर रोशन सिँह को स्वामी सोमदेव जी ने ही प्रेरणा दी थी | इन्हीं दोनों आर्यसमाजी मित्रों ने ही अशफाक उल्ला खाँ को भी क्रांतिकारियो का सहयोगी बनने को उत्सुक किया था | सुखदेव जी को स्वामी सत्यदेव जी ने एंव उधम सिँह को स्वामी श्रध्दानन्द जी ने तथा *लाला लाजपत राय* को महात्मा हंसराज जी और पं० गुरूदत्त विद्यार्थी ने देश की आन पर मर मिटने को तैयार किया था | सर वैलेण्डा इन शिरोल ने भारत का दौरा करने के पश्चात् अपनी पुस्तक अनरैस्ट इन इण्डिया में अपनी रिपोर्ट लिखी थी... "आर्यसमाज ही एक ऐसी ताकत है जो अंग्रेजी साम्राज्य को नष्ट करने के लिए संघर्षशील है |" *क्रान्तिकारी लाला लाज पत राय तो आर्यसमाज को अपनी माता कहते थे वहीं नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के अनुसार...* "संगठित कार्य, दृढ़ता, उत्साह और समन्वयत्मकता की दृष्टि से आर्यसमाज की क्षमता कि बराबरी कोई समाज नहीं कर सकता |" हैदराबाद के भारत के शामिल कराने के सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ स्वामी श्रद्धानंद द्वारा स्थापित *गुरुकुल कांगङी के बृहम्चारीयो ने निजाम के खिलाफ रक्तरंजित हैदराबाद आंदोलन चलाया था।* यह तो बस परिचय मात्र के लिए कुछ उदाहरण दिए। वरना इस विषय पर तो पुरा ग्रंथ लिखा जा सकता है। *कृणवन्तो विश्वमार्यम* भारत माता की जय हो